परिचय - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

परिचय


25 मार्च 1957 को दिल्ली के चांदनी चौक के पत्थरवालान में  जन्मा, बचपन के कुछ वर्ष सिविल लाइन्स, शाहदरा में व्यतीत हुए! आरम्भिक गुरु मेरी मम्मी उर्मिला देवी रहीं! हिन्दी, अंग्रेजी अक्षर ज्ञान, गिनती और बीस तक पहाड़े माता जी ने ही सिखाये! अत: शुरुआती कक्षाओं में अपनी उम्र से कई साल बड़े लड़कों से भी पढ़ाई में बहुत आगे रहा! 

शाहदरा के बाद कुछ वर्ष चुरू, राजस्थान में गुजारे! उसके बाद 1963 से 1968 तक कलकत्ता में रहा! 


कलकत्ता में पहले स्वदेश शिक्षायतन, नामक प्राइमरी स्कूल में पढ़ा! फिर 1964 में अपर चितपुर रोड पर मदन चटर्जी लेन के ठीक सामने स्थित श्रीडीडू माहेश्वरी पंचायत स्कूल में पांचवी कक्षा में दाखिला लिया और  नौवीं कक्षा तक वहीं पढ़ाई की! 


कलकत्ता में जब चौथी कक्षा में स्वदेश शिक्षायतन में था, तभी पहली बार 'दमा' का अटैक हुआ! 


1964 में दमा ( Asthma) ने बहुत परेशान किया! मैं वार्षिक परीक्षाओ के भी तीन पेपर नहीं दे सका! 


किन्तु अर्द्धवार्षिक परीक्षा में मैंने पांचवी कक्षा के चारों सेक्शन ( A, B, C, D) के दो सौ से अधिक छात्रों में प्रथम स्थान प्राप्त किया था तथा वार्षिक परीक्षा में साढ़े तीन सौ नम्बर के चार पेपर्स में "टोटल नम्बर" साढे़ छ: सौ नम्बर के पास मार्क से काफी ज्यादा होने के कारण, "मिस" किये पेपर्स की दोबारा परीक्षा लिए बिना अगली कक्षा में प्रोमोट कर दिया गया! 


पहली कविता व कहानी 1964 में ही कलकत्ता के दैनिक समाचार पत्र "सन्मार्ग" के "बालजगत" स्तम्भ में छपी! 


1965 में स्कूल की पत्रिका "सरोज" में कहानी, 1966 में कविता छपी! 


सन्मार्ग अखबार में भी यदा-कदा कविता कहानी छपती रहीं! 


दमा के प्रकोप के कारण पढाई में काफी क्षति उठानी पड़ी! 


1969 में दस फरवरी को सबसे छोटे मामाजी विजय सिंह रस्तोगी के शुभ विवाह के अवसर पर दिल्ली सपरिवार दिल्ली आना हुआ तो मेरी बीमारी को देखते हुए नानाजी हरि स्वरूप रस्तोगी ने पिताजी को दिल्ली बस जाने की सलाह दी और फिर वापस कलकत्ता जाना न हुआ! 


हम दिल्ली के हो गये! 


दिल्ली में गांधीनगर के सुभाष मोहल्ला में सरदार जीत सिंह के मकान में एक कमरा किराये पर लिया गया! वहीं सपरिवार रहने लगे! 


वहीं से दिल्ली की गर्ग एण्ड कम्पनी की पत्रिका "गोलगप्पा" में कहानियाँ भेजीं, जो छप गईं, लेकिन पारिश्रमिक नहीं आया तो गर्ग एण्ड कम्पनी की दरीबा स्थित  दुकान पर ज्ञानेन्द्र प्रताप गर्ग से पहचान हुई और बाल पाकेट बुक्स लिखने का अवसर मिला! 


किताबें पढ़ने का शौक इतना था कि अशोक गली स्थित "विशाल लाइब्रेरी" के मालिक बिमल चटर्जी से दोस्ताना सम्बन्ध हो गये और बाद में - बिमल हर जगह मुझे अपना छोटा भाई बताने लगे तथा मैं उनके घर में उनका फैमिली मेम्बर बन गया! 


बिमल ने मनोज पाकेट बुक्स के लिए बाल पाकेट बुक्स लिखना आरम्भ किया तो मुझसे भी कहानियाँ तथा बाल उपन्यास लिखवाने लगे! 


फिर भारती पाकेट बुक्स का अखबार में छपा विज्ञापन मुझे मेरे एक दोस्त अरुण शर्मा ने दिखाया तो भारती पाकेट बुक्स के गली लेहसुवा स्थित आफिस पहुँचा और भारती पाकेट बुक्स के स्वामी लाला राम गुप्ता को यकीन ही नहीं आया कि मैं उपन्यास लिख सकता हूँ! उन्हें सन्तुष्ट करने के लिए उनके सामने बैठ कर उपन्यास का एक पेज लिखना पड़ा! 


उसके बाद तो एक के बाद एक प्रकाशकों से नाता जुड़ता गया! 


लाला राम गुप्ता मुझे कहानियों का राजा कहते थे! जब तक वो जीवित रहे! उनसे व्यापारिक व व्यक्तिगत सम्बन्ध बना रहा! 


मनोज पाकेट बुक्स में सबसे पहले मंझले भाई गौरीशंकर गुप्ता का प्रिय बना! वह व्यक्तिगत निजी बातें भी मुझसे कर लिया करते थे! वह मुझे कभी आलराउंडर तो कभी हरफनमौला कहते थे! 


बाद में बड़े भाई राजकुमार गुप्ता और छोटे भाई विनय कुमार गुप्ता से भी अच्छे व निकट सम्बन्ध स्थापित हुए, जो आज तक कायम हैं! 


राजकुमार गुप्ता जी ने "मेंहदी" उपन्यास के प्रकाशन के सम्बन्ध में आदरणीय गुलशन नन्दा जी से मुझे मिलवाते हुए नन्दा जी से परिचय करवाते हुए कहा - "नन्दा जी, यह छोटा सा बच्चा, हमारा शब्दों का जादूगर है! 


तभी गौरीशंकर जी ने भी कहा था- " नन्दा जी, आलराउंडर है यह! किसी भी सब्जेक्ट पर कुछ भी लिखवा लो, शिकायत नहीं मिलेगी! 


एक नाम विनय कुमार जी ने भी दिया था! वो तब - जब मनोज नाम से छपने वाले उपन्यास "माँग सजा दो सौतन की" एडिट करने के लिए दिया था! तब विनय जी ने कहा था- तू तो यार परफेक्शनिस्ट है! 


मनोहर श्याम जोशी के समय साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सह सम्पादकों में से एक देवेन्द्र रस्तोगी मुझे हमेशा "छोटा जादूगर" कहते थे तथा ओरियन्टल पाकेट बुक्स तथा लक्ष्मी पाकेट बुक्स में मेरे उपन्यास छापने वाले सतीश जैन उर्फ "मामा" मुझे "कलाकार" कहा करते थे! 


कुल कितने उपन्यास लिखे सही सही संख्या बतानी मुश्किल है! कभी कोई रिकॉर्ड नहीं रखा! कोई लिस्ट नहीं बनाई! 


निकट भविष्य में ड्रीमलैण्ड पब्लिकेशन से श्रीगणेश महापुराण" तथा एक अन्य प्रकाशन से "बाहुबली परशुराम" शीघ्र प्रकाशित होने की सम्भावना है! 

*****

मेरी निन्मं वेबसाइटस भी हैं:


 http://www.saynotosucide.com/ - इस वेबसाइट निर्माण जीवन से निराश हो चुके लोगों के मन में उत्साह और उमंग का संचार करने हेतु बनाई है। इस साईट में इस विषय से जुड़े उनके काफी आलेख हैं जिन्हें आप पढ़ सकते हैं। साईट के विषय में आप ज्यादा जानकारी  आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

saynotosucide क्यों?


http://www.humhindus.com/ - इस वेबसाइट का निर्माण योगेश जी ने हिन्दू होना क्या है इसके प्रचार के लिए किया है। वेबसाइट के उद्देश्य के विषय में  लिंक जाकर पढ़ा जा सकता है:


हिन्दू बनो - हिन्दुस्तान के लोगों!


मुझसे आप निम्न लिंक्स के माध्यम से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:

फेसबुक



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें