'खेल-खिलाड़ी' - 1 - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

'खेल-खिलाड़ी' - 1

मैंने बहुत से लेखकों के लिए जासूसी- सामाजिक और बाल उपन्यास लिखे हैं ! कभी लोटपोट में मेरी कॉमिक्स स्ट्रिप्स "चाचा चक्रम" "मांगेलाल मक्खीचूस" "उपकारी लाल" आदि छपी हैं!

बहुत से सत्यकथा लेखक अपनी सत्यकथाएं मुझसे लिखवाते थे !

मैंने बतौर संपादक बहुत सी पत्रिकाओं का सम्पादन किया है! जिनमे से कुछ में मेरा नाम बतौर सह संपादक छपता रहा है!

बायें से दायें: मैं, अत्तर सिंह,सरदार मनोहर सिंह, विनोद, किशन

यह फोटो तब की है- जब मैं "खेल-खिलाड़ी" पत्रिका में सम्पादक था ! सबसे बाएं हरे स्वेटर में सबसे छोटे कद का शख्स मैं हूँ! मेरे निकट का पतला और लंबा व्यक्ति अत्तर सिंह है, जो कम्पोजिंग एजेंसी चलाता था ! बीच में खेल-खिलाड़ी पत्रिका के स्वामी सरदार मनोहर सिंह ! उसके बाद क्लैरिकल काम करने वाला विनोद और सबसे आखिर में पैकिंग तथा क्लैरिकल और भाग - दौड़ के सभी काम करने वाला किशन!

खेल-खिलाड़ी का बस, उतना ही स्टाफ था ! लेखकों में सबसे पहले लेखक देवराज पुरी और योगराज थानी ही थे! बाद में देवराज पुरी जी के सुपुत्र नरोत्तम पुरी, सरदार जसदेव सिंह, रवि चतुर्वेदी, सुदीप (धर्मयुग के सम्पादक मंडल में से एक) तथा बहुत से लोग लेखकों की लिस्ट में शामिल हुए, जिनमें मैं भी था!

मैंने पहला खेल सम्बन्धी लेख- तब के लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर पर लिखा!

तब गावस्कर दादर की जिस गली में रहते थे, वहीं बाहरी तरफ पायोनियर न्यूज़ एजेंसी का बुक स्टाल था, जिसे उस समय दिल्ली के करोल बाग की गफ्फार मार्किट में वीनस पॉकेट बुक्स और मधु प्रकाशन के मालिक "पाहवा साहब" के सुपुत्र अश्वनी पाहवा चलाते थे! अश्वनी ने मुझे बताया कि सुनील गावस्कर की माता जी, सुनील गावस्कर के आर्टिकल वाले लेख की कॉपी चार बार ले गयीं थीं ! सुनकर अच्छा लगा!

दरअसल मैंने जब वो लेख लिखा था, उस समय सुनील गावस्कर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बन चुके थे और एक मैच में स्पिनर शिवलाल यादव से गेंदबाजी करवाने के उनके स्टेप की बहुत आलोचना हो रही थी, क्योंकि शिवलाल यादव बहुत बुरी तरह पिटे थे !

मैंने उस लेख में गावस्कर के कदम का बचाव किया था और पक्ष में सटीक दलीलें दी थीं !

अश्वनी ने बताया कि उसी गली में दिलीप वेंगसरकर भी रहते थे ! उन्होंने दूर से वेंगसरकर के घर के बारे में भी बताया और मुझे वेंगसरकर द्वारा खरीदी गयी, पहली अम्बेसडर सेकंड हैंड कार भी दिखाई ! शायद सफ़ेद रंग की कार थी !

© योगेश मित्तल

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