चुटकुलों के खलीफा सुरेन्द्र मोहन पाठक - योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शनिवार, 19 सितंबर 2020

चुटकुलों के खलीफा सुरेन्द्र मोहन पाठक - योगेश मित्तल


सुरेन्द्र मोहन पाठक के कुछ जोक बुक्स


अगर आप चुटकुले-जोक्स पसन्द करते हैं और आपने सुरेन्द्र मोहन पाठक का नाम नहीं सुना तो आप चुटकुला प्रेमी हो ही नहीं सकते ! 

चुटकुलों के मामले में बड़े-बड़े चुटकुलेबाज भी हमेशा सुरेन्द्र मोहन पाठक से पीछे रहे ! यूँ तो उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक को सुनील सीरीज़, विमल सीरीज़ और सुधीर कोहली सीरीज़ के जासूसी उपन्यासों और थ्रिलर के लिए जाना जाता है, पर उन्होंने बहुत सारी जोक्स बुक भी लिखी हैं ! 

जोक्स बुक लिखना कोई बड़ी बात नहीं है ! हिन्दी अंग्रेजी जोक्सबुक से टीपकर या ट्राँसलेट कर आप अपनी दस जोक्स बुक तैयार कर सकते हैं ! पर आप सुरेन्द्र मोहन पाठक नहीं बन सकते ! सुरेन्द्र मोहन पाठक का मुकाबला ही नहीं कर सकते !

सुरेन्द्र मोहन पाठक को आप जोक्स या चुटकुलों का चलता-फिरता इनसाइक्लोपीडिया कह सकते हैं ! 

चुटकुले सुनाने वाले आपके जीवन में बहुत आये होंगे ! पर सुरेन्द्र मोहन पाठक जैसा हर किसी के जीवन में नहीं आता ! आप कोई भी....कैसी भी बात कहिये....उस बात पर फबता...मैच करता चुटकुला तत्काल सुनाना सुरेन्द्र मोहन पाठक के अलावा किसी और के बस की बात नहीं ! 

कई बार मैं सोच में पड़ जाता कि एक दिन  में सौ से ज्यादा चुटकुले-जोक्स सुनाकर भी इस तरह कौन तैयार रह सकता है कि मौक़ा पड़ने पर और नए जोक्स सुना दे कि एक भी जोक रिपीट न हो ! गनीमत है पाठक साहब ने किसी लाफ्टर चैलेंज में हिस्सा नहीं लिया, वरना आपलोग कपिल शर्मा और सुनील ग्रोवर, राजू श्रीवास्तव को नहीं - सिर्फ और सिर्फ सुरेन्द्र मोहन पाठक को याद करते ! 

आखिर में एक बात बता दूँ -

मैं हमेशा सुरेन्द्र मोहन पाठक के BEST श्रोताओं में से एक रहा हूँ ! पाठक साहब के हर चुटकुले पर उसकी श्रेष्ठता के हिसाब से कहकहा लगाकर मैंने सदैव पाठक साहब के चुटकुलों का भरपूर मज़ा लिया है !

किसी भी शादी के फंक्शन या अन्य पार्टी में योगेश मित्तल पर नज़र पड़ते ही पाठक साहब मुझे एक तरफ से लपेटकर दूसरे कंधे पर हाथ ले जाते और फिर हम भीड़ से अलग एक तरफ हो जाते, ऐसे में पाठक साहब पहला चुटकुला बड़े आराम से धीरे-धीरे सुनाते, फिर एक से दूसरा, तीसरा और फिर मैं ठहाके लगाते-लगाते गिनती ही भूल जाता !

कनाट प्लेस के किदवई भवन में जब टेलीफोन एक्सचेंज का कोई काम चल रहा था, तब सुरेन्द्र मोहन पाठक ही वहाँ सुपरवाइजर थे और तब मैं बंगला साहिब गुरुद्वारे के ठीक सामने टाप फ्लोर के एक फ्लैट में रहता था, तब पाठक साहब रोज मुझे नीचे से ही आवाज़ लगाते! उनकी आवाज बहुत तेज नहीं होती थी तो शुरू के दिनों में कभी सुन नहीं पाया तो वह सीढ़ियों की राह टाप फ्लोर पर भी आये और नाराज होकर बोले - "भले आदमी, कोई आवाज़ दे रहा हो तो सुन भी लिया करो, तुम्हें पता है - मैं हाइपरटेन्शन का मरीज हूँ! इतनी सारी सीढ़ियाँ चढ़ना मेरे बस की बात नहीं है!"

बाद में मैं पाठक साहब के आने के समय पर चौकन्ना रहने लगा! 

पाठक साहब मुझे अपने साथ अपने आफिस ले जाते और उनके रूम या केबिन में जब तक उनके उठने या चलने का मूड नहीं होता, मैं साथ ही रहता! 

हमारे बीच काफी या चाय या कुछ और खाने पीने का दौर भी चलता था! 

कभी-कभी हमारे बीच कहानियों पर चर्चा होती तो कभी-कभी पाठक साहब बिना रुके ढेर सारे चुटकुले सुनाते! उनका चुटकुले सुनाने का अन्दाज भी निराला था! दूसरों को हँसाने के साथ-साथ वह खुद भी हँसना कभी नहीं भूलते थे! 

पर उनके ठहाके अक्सर मेरे ठहाकों की आवाज से दब जाया करते थे! 

यदि आप पाठक साहब से कभी न कभी मिले हैं और आपने उनके श्रीमुख से चुटकुलों का आनंद नहीं उठाया तो निःसंदेह आप उनसे मिलकर भी उनकी एक बहुत बड़ी खूबी का लुत्फ़ उठाने से वंचित रह गए !

- योगेश मित्तल

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जोकबुक्स

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