क्यों ....? - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शनिवार, 19 सितंबर 2020

क्यों ....?

Image by Isa KARAKUS from Pixabay


बच्चा छोटा होता है तो उसके मन में बहुत से सवाल घुमड़ते हैं। ऐसे ही सवालों को कुछ पंक्तियों में पिरोया है।

क्यों....?


क्यों? बस, एक शब्द है क्यों - पर यह क्यों है? किसलिए है?

जीवन के आधे प्रश्न तो - इस क्यों के ही दिए हैं।



पेड़ से फल क्यों नीचे गिरता - ऊपर क्यों नहीं जाता है?

कछुआ क्यों धीरे चलता है - खरहा क्यों दौड़ लगाता है?

गैस भ्हरी हो तो गुब्बारा - ऊपर क्यों उड़ जाता है?

क्यों भिण्डी के संग कोई भी - आलू नहीं पकाता है?

क्यों बच्चा आते ही रोता - हँसने में क्या जाता है?

क्यों दूल्हा घोड़ी पर चढ़ता - सेहरा क्यों सिर पे लगाता है?

क्यों कुत्ता भौं-भौं करता है - गधा ढेंचू चिल्लाता है?

क्यों हर रात अँधेरा होता - सूरज क्यों दिन में आता है?

क्यों नहीं पेड़ों पर लगती हैं खूब मिठाई

लड्डू-पेड़े-बर्फी-रसगुल्ला और बालूशाही।

क्यों स्कूल का बस्ता रोज भारी हो जाता है?

क्यों स्कूल का रिक्शा रोज समय पर आता है?

टी वी देखना और खेलना, क्यों मुझको भाता है?

क्यों मेरी मम्मी को...मुझ पर गुस्सा आता है?



-योगेश मित्तल


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