प्रकाशन जगत की कुछ सच्चाईयाँ - योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शनिवार, 19 सितंबर 2020

प्रकाशन जगत की कुछ सच्चाईयाँ - योगेश मित्तल

1. विक्रांत सीरीज लिखवाने वाले प्रकाशक विक्रांत सीरीज के उपन्यास "ओम प्रकाश शर्मा" के नाम से ही छापते थे! किन्तु यह नकली ओम प्रकाश शर्मा होता था! असली जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा नहीं! 

"विक्रांत" कैरेक्टर के जन्मदाता कुमार कश्यप थे, लेकिन कुमार कश्यप भी पहले नकली "ओम प्रकाश शर्मा" के लिए राजेश, जयन्त, जगत, जगन, बागारोफ, चरित्रों पर ही लिखते थे ! पर कुमार कश्यप ने असली ओम प्रकाश शर्मा के चरित्रों के साथ अपना एक कैरेक्टर विक्रांत पैदा किया, यह कैरेक्टर उन्होंने नकली ओम प्रकाश शर्मा के लिए लिखे उपन्यासों में ही पैदा किया था! पर जब "विक्रांत" - राजेश, जयन्त, जगत, जगन से भी ज्यादा पापुलर हो गया तो प्रकाशक विक्रांत सीरीज "कुमार कश्यप" के नाम से छापने लगे, पर तब अन्य प्रकाशक नकली ओम प्रकाश शर्मा में विक्रांत सीरीज ही लिखवाने लगे! 

मेरे ( योगेश मित्तल के ) मनप्रिय प्रकाशन तथा भारती पाकेट बुक्स  में छपे उपन्यासों को छोड़ कर विक्रांत सीरीज के सभी उपन्यास विभिन्न प्रकाशनों से ओम प्रकाश शर्मा के नकली नाम से ही छपे थे! 

2. बिमल चटर्जी नाम अचानक ही धूमकेतु की तरह उभरा था और उसी की तरह लुप्त हो गया, पर जब बिमल चटर्जी नाम चमका था, उसने अपने से पहले के और समकालीन लेखकों को काफी फीका कर दिया था! बिमल चटर्जी से ठीक पहले परशुराम शर्मा का आगमन उपन्यास जगत में आग सीरीज़ से हुआ था और परशुराम शर्मा बुरी तरह छा गये, किन्तु उन्हीं दिनों एक नौजवान विपिन जैन बिमल चटर्जी से मिला और बोला कि वह बिमल चटर्जी से परशुराम शर्मा की "आग" सीरीज़ जैसी कोई सीरीज़ लिखवाना चाहता है!

बाएँ से दायें: परशुराम शर्मा, विमल चटर्जी, वेद प्रकाश शर्मा

बिमल चटर्जी ने तब पहली चोट, दूसरी चोट, तीसरी चोट और चोट पर चोट नाम दिये! चोट सीरीज़ सुपरहिट हुई और बिमल चटर्जी भी! अपने जमाने में बिमल जबरदस्त सुपरहिट थे तथा एक समय ऐसा था, जब प्रकाशकों की पहली पहली यानि नम्बर वन पसन्द थे! खास बात यह थी कि बिमल ने तीसरी चोट और चोट पर चोट के कुछ सीन मुझसे भी लिखवाये थे! दरअसल बिमल को मुझसे बेहद प्यार था और थोड़े बहुत वह अन्धविश्वासी भी थे! न जाने उनके दिमाग में कैसे यह आ गया कि उनकी सीरीज़ में योगेश का हाथ भी लग गया तो सीरीज़ सुपरहिट हो जायेगी! 

बाद में भी कई बार कई उपन्यासों के दो-चार पेज बिमल चटर्जी मुझसे लिखवाते रहे! पर कई बार समय की कमी भी मुख्य कारण होता था! 

बिमल की फोमांचू-विशाल सीरीज उस समय सुपरहिट थी!

बाद में टैंजा जैसा पात्र भी गढ़ा, जो कि यह समझिये - फौलादी और सुपरमैन जैसा कैरेक्टर था, किन्तु बाद में प्रकाशकों ने बिमल चटर्जी को एक बुरी लत लगा दी! 

बिमल चटर्जी पीने के शौकीन थे! आरम्भ में एक प्रकाशक बढ़िया शराब की बोतल लेकर लाला का बाजार कृष्णा लाज में पहुँचे, जहाँ बिमल और मैं ठहरे हुए थे! 

बिमल के कुछ प्रकाशकों से जुबानी अनुबन्ध थे और वे बिमल को अच्छा पैसा दे रहे थे! अत: बिमल चटर्जी किसी भी नये प्रकाशक को उपन्यास देने में असमर्थ थे! पर.. 

नये प्रकाशक ने वहाँ बिमल के सामने एक मोटी रकम रखी और कहा - "अगर तू नावल नहीं दे सकता तो अपने दस कापीराइट लिख दे! हम किसी बहुत अच्छे लेखक से लिखवाकर ही तेरे नाम से छापेंगे! 

और कापीराइट लिखने के एवज में बिमल को उपन्यास दिये बिना एकमुश्त मोटी रकम मिल रही थी तो बिमल लालच में आ गये और मेरे मना करने पर भी उन्होंने कापीराइट लिख दिये! 

तब मेरठ में एक भेड़ चाल सी हुआ करती थी! एक प्रकाशक अगर कुछ नया कर रहा है तो दूसरा भी वही करने दौड़ता था और मेरठ में ईश्वरपुरी के सभी प्रकाशक आपस में रिश्तेदार और रोज एक दूसरे के साथ मिलने उठने बैठने वाले थे तथा एक दूसरे से कुछ नहीं छिपाते थे! 

एक प्रकाशक बिमल से कापीराइट लिखवाकर क्या गया! कापीराइट लिखवाने रोज प्रकाशक आने लगे! 

बिमल को मुफ्त का पैसा मिला तो लिखने में बहुत सुस्त हो गये, मगर उनके उपन्यास हर प्रकाशन से आने लगे! 

फिर प्रकाशकों के पास कापीराइट खत्म होते होते, धीरे धीरे बिमल का नाम भी खत्म हो गया! 

तब एक नया सितारा वेद प्रकाश शर्मा चमकने लगा था और परशुराम शर्मा तथा कुमार कश्यप छाने लगे थे तथा सबके सब दौड़ में बिमल चटर्जी से बहुत आगे निकल गये! 

3. राज भारती जी ने विजय सीरीज के बहुत उपन्यास लिखे ! बाद में विजय के साथ सागर इंट्रोड्यूस किया, जोकि जेम्स बांड जैसा चरित्र रखता था !

4.  यशपाल वालिया ने शुरू में यशपाल वालिया नाम से ही नॉवल लिखे ! बाद में विजय पॉकेट बुक्स में अपनी पत्नी मीना के प्यार के नाम से - मीनू वालिया नाम से ! बाद में राजा पॉकेट बुक्स में टाइगर नाम से ! पर हमेशा की तरह वालिया साहब के पास जब भी टाइम कम होता या वह नॉवल पूरा कर चुके होते थे और उसमे किसी कारणवश पेज बढ़ाने की नौबत आ जाती थी तो वह मुझसे यानि योगेश मित्तल से पेज बढ़वाते थे ! टाइगर नाम से उनके लिखे आख़िरी उपन्यास "गोली तेरे नाम की" के आख़िरी 60-65 पेज मेरे (योगेश मित्तल के) ही लिखे हुए हैं !

5. रीमा भारती चरित्र पर कई लेखकों ने लिखा ! प्रदीप शर्मा और अनिल सलूजा ने इस पर बेहतरीन उपन्यास लिखे ! प्रदीप शर्मा - दिनेश ठाकुर नाम से उपन्यास जगत में पाठकों द्वारा पहचाने जाते रहे हैं!

6. यशपाल नाम से साहित्यिक लेखक यशपाल ने लिखा है, जिन्हें उनके परिचित कॉमरेड यशपाल नाम से जानते और पहचानते थे ! वह कम्युनिस्ट विचारधारा के हामी थे!



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