मैं अभागा नहीं - योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

मैं अभागा नहीं - योगेश मित्तल


मैं अभागा नहीं! मैं अभागा नहीं!
हूँ नसीबों का मारा- कोई गम नहीं।
हौसले में किसी से  - जरा कम नहीं 
 क्या हुआ जो मेरा भाग्य - जागा नहीं 
 मैं अभागा नहीं! मैं अभागा नहीं!

 दुनिया में लाखों ऐसे भी इनसान हैं।
 रोजी-रोटी के लिए रोज परेशान हैं।
 हैं फटे कपड़े - लेकिन सूई-धागा नहीं।
 मैं अभागा नहीं! मैं अभागा नहीं 

भूख से जाने कितने मरे जा रहे।
पेट भरने की खातिर बिके जा रहे।
फिर भी दुनिया से कोई भी भागा नहीं।
मैं अभागा नहीं! मैं अभागा नहीं!

उनसे बेहतर तो हूँ - मुस्कराता भी हूँ।
हँस के जीवन को ठेंगा दिखाता भी हूँ।
फिर भी कहते हो, कह दो अभागा सही।
पर अभागा नहीं - मैं अभागा नहीं 

-योगेश मित्तल

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