करसन घावरी से मिलना - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

बुधवार, 27 जनवरी 2021

करसन घावरी से मिलना

करसन घावरी से मिलना मुझे आज भी याद है ! उस दिन वह बहुत बढ़िया मूड में थे ! जब मैंने कहा कि मैं आपकी फोटो खींचना चाहता हूँ ! करसन घावरी ने पहले तो मुझे कसकर आलिंगनबद्ध किया, आज की भाषा में जिसे "हग" कहा जाता है, फिर एकाएक मुझे ऊंचा उठा लिया ! फिर अपने ही अंदाज़ और अपनी ही हिंदी में कहा -"आप तो बड़े हलके हो !"

फिर तुरंत ही फिर बोले ,"आपको खराब तो नहीं लगा, मैं आपको ऊपर उठा लिया !"

"मुझे बहुत अच्छा लगा !" मैंने कहा ! फिर मेरे साथ आये डॉक्टर मुकेश कौशिक ने मेरे साथ करसन घावरी की फोटो खींची, डॉक्टर मुकेश कौशिक लेखक भी थे और खेल खिलाड़ी के लिए लिखते भी थे !

कसरन घावरी से मिलना - योगेश मित्तल
करसन घावरी के साथ मुझे तो तस्वीर में आप पहचान ही गए होंगे !

तब क्रिकेट खिलाड़ियों को आज जितना पैसा नहीं मिलता था ! जबकि क्रिकेट बोर्ड तब भी बहुत कमाता था ! हाँ, तब विज्ञापनों से आज जितनी कमाई नहीं थे ! वन डे, टी ट्वेंटी का ज़माना नहीं था ! सिर्फ टेस्ट मैच खेले जाते थे, जिनमें शुरू में संभवतः खिलाड़ियों को दो सौ रुपये प्रतिदिन के मिलते थे ! बाद में नवाब पटौदी मंसूर अली खान ( फिल्म स्टार शर्मिला टैगोर के पति, हीरो सैफ अली खान के पिता ), बिशन सिंह बेदी और सुनील गावस्कर खिलाड़ियों का नेतृत्व कर उन्हें अधिक पैसा दिलवाने में कामयाब हुए, जोकि एक टेस्ट मैच के दस हज़ार रुपये हुआ करते थे !

उन दिनों क्रिकेट खिलाड़ियों को फाइव स्टार होटल में भी नहीं ठहराया जाता था ! यह तस्वीर जनपथ होटल की है, जो उस समय थ्री स्टार होटल कहलाता था !

उन दिनों पश्चिम क्षेत्र के खिलाड़ी फिरोज शाह कोटला में उत्तर क्षेत्र के साथ दलीप ट्रॉफी मैच खेलने आये थे !

तब सुनील गावस्कर ने मुझे बहुत परेशान किया था, जब भी मैं उसकी फोटो खींचने लगता वह मुंह घुमा लेता और मेरा स्नेप खराब हो जाता था !

गावस्कर ने मुझसे कहा -"आप मैदान में जितनी चाहें फोटो खींच लीजिये, मैं मना नहीं करूंगा !" पर उसने एक भी फोटो "आफ द ग्राउंड" नहीं खींचने दी!

दरअसल तब खिलाड़ियों ने पहली बार फोटो खिंचवाने के लिए पैसे मांगना आरम्भ कर दिया था और मेरे जैसे गरीब लेखक, पत्रकार, रिपोर्टर के लिए उन्हें पैसा देना संभव नहीं था और हिंदी खेल पत्रिका चलाने वाले मालिकों की हालत भी पतली ही थी !

गावस्कर की फोटो खींचने की कोशिश मैं मेरी एक पूरी रील बेकार हुई, दूसरी रील के भी कई स्नेप खराब हुए!

उन दिनों बारह स्नेप की एक रील बीस रुपये की आती थी ! और बीस रुपये बहुत होते थे ! गाय- भैंस का सामने दुहा दूध उन दिनों पचास पैसे किलो होता था ! तब लीटर नहीं कहा जाता था, किलो ही कहते थे !

दरअसल मेरा कद बहुत छोटा होने की वजह से बहुत से खिलाड़ी शायद यूँ ही आम आदमी समझ उपेक्षित कर देते थे ! कोई मुझे लेखक, पत्रकार, रिपोर्टर समझता ही नहीं था, जबकि उन दिनों खेल-खिलाड़ी मासिक पत्रिका में मेरा नाम सह सम्पादक के रूप में छपता था ! और प्रकाशकों, लेखकों, कवियों, शायरों में, मैं बहुत लोकप्रिय था!

मज़े की बात है - मैंने क्रिकेट पर पहला लेख सुनील गावस्कर पर ही लिखा था और खेल खिलाड़ी के जिस अंक में वह लेख छपा था, उसकी प्रति गावस्कर की माता जी मुंबई की दादर स्थित पायोनियर न्यूज़ एजेंसी से बहुत बार ले गयीं थीं !

उन दिनों पायोनियर न्यूज़ एजेंसी के काउंटर पर अश्विनी पाहवा बैठते थे ! यह बात उन्होंने ही मुझे बताई थी !

अश्विनी ने मुझे दादर की वो गली भी दिखाई, जहां गावस्कर और बेंगसरकर क्रिकेट खेला करते थे !

अश्विनी ने मुझे यह भी बताया कि बेंगसरकर ने पहली कार एक सेकंड हैंड Ambassador खरीदी थी ! उसने मुझे वहाँ खड़ी कार भी दिखाई थी!

उस दिन मुझे बार-बार गावस्कर का पीछा करते देख, बाद में लाला अमरनाथ जी मुझसे टकराये !

उन्होंने मुझे खिलाड़ियों की फोटो खींचने के लिए भाग दौड़ करता देख मुझे पकड़ लिया और मज़ाक में बोले -"कोई आपसे फोटो नहीं खिंचवा रहा तो मेरी ही फोटो खींच लो !"

मैं रुआंसा हो गया, बोला - " अब रील ही ख़त्म हो गयी ! वरना आपकी और सुरेन्द्र -महेंद्र की फोटो जरूर खींचता !"

लाला जी ने मेरी डबडबाई आँखों को देख मुझे सीने से लगा कर गाल पर प्यार किया और बोले -"कोई बात नहीं ! अगली बार रील लेकर आओ तो मेरे पास आना, मैं देखता हूँ - कोई आपसे फोटो कैसे नहीं खिंचवाता है !"

अफ़सोस ! अगली बार लाला अमरनाथ जी से मुलाक़ात का अवसर नहीं मिला !

लाला अमरनाथ जी के देहावसान का मुझे भी उनके परिवार से कम दुःख नहीं हुआ, लेकिन उनके परिवार को आज भी यह बात पता नहीं होगी !

- योगेश मित्तल 


©योगेश मित्तल

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