रमता योगी - बहता पानी - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

मंगलवार, 26 जनवरी 2021

रमता योगी - बहता पानी

रमता  योगी - बहता पानी | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता
Image by Sasin Tipchai from Pixabay 


जीने की नहीं कोई तमन्ना, 
मरना   भी    कुबूल   नहीं! 
हम बहता पानी हैं, जिसमें
रत्ती   भर   भी   धूल  नहीं! 

जैसे चले जिन्दगी, उसको
वैसे     ही     चलने     देते!
मन में पलनेवाली ख्वाहिश
मन   में   ही   पलने    देते!

कुछ खाने की इच्छा हो तो
हम  भी  कुछ  खा  लेते  हैं! 
यदि गाने की  इच्छा हो तो
बेसुरा   भी   गा    लेते   हैं! 

कोई  हमें गाली  दे तो हम
मन  ही  मन   मुस्काते  हैं! 
अगर कोई तारीफ करे तो
हंस  कर  ही  रह  जाते हैं! 

गुस्से को अपनी चौखट पर
कभी    नहीं    आने   देते! 
कोई  हमें कुछ भी  कह ले, 
पर  हम न कभी  ताने देते! 

हमें बद्दुआ जो भी दे, हम
उस पर भी  दुआ लुटाते हैं! 
खाना कभी नहीं मिलता तो
भूखे    ही    सो   जाते   हैं! 

सबसे मित्र भाव से मिलते, 
सबको   मित्र   बनाते   हैं! 
कोई  शत्रुता   हमसे  रखे, 
तो  भी   दया  बरसाते  हैं! 

हम  तो   रमते  योगी  हैं,
बहते पानी से बह जाते हैं! 
प्रभु सदैव अच्छा करते हैं, 
सबको  यही  समझाते  हैं! 

बुरे तो  हम इन्सान हैं, जो
अक्सर  करते  रहते  बुराई! 
बुरे  काम  का बुरा नतीजा
बात हमें यह समझ न आई! 

-योगेश मित्तल
© योगेश मित्तल 

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