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खुद से खुद के बारे में,
नहीं पूछता कभी मैं!
एक आइना है, जिसके
सामने खड़ा हो जाता हूँ!
अच्छाइयाँ दिखती हैं तो
कद से बड़ा हो जाता हूँ!
और बुराई नज़र आती है
तो मैं कुबड़ा हो जाता हूँ!
-योगेश मित्तल
© योगेश मित्तल
कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।
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