पर पिछली किश्त में मैंने एक बात कही थी, जिसका स्पष्ट अर्थ था कि उन दिनों मनोज पॉकेट बुक्स का जन्म नहीं हुआ था, प्लांनिंग चल रही थी, लेकिन आर्थिक समस्या राज कुमार गुप्ता और गौरी शंकर गुप्ता के सामने भयंकर थी !
अच्छी प्रोडक्शन और वितरण व्यवस्था आदि सुचारु रूप से चलाने के लिए एक साथ अगले दो-तीन सेट की पुस्तकों की प्लांनिंग करना जरूरी था और नगद रुपया सभी उपलब्ध मार्गों से एकत्रित करने पर भी कम पड़ रहा था !
लेखकों, आर्टिस्टों, प्रेस वालों, बाइंडर्स आदि से उधार नहीं किया जा सकता था ! प्रकाशन नया था और साख पहले से बनी हुई नहीं थी, बनानी थी !
गौरी शंकर गुप्ता के दोस्तों की संख्या अच्छी-खासी थी और उनमे कई बहुत रईस-धनी परिवार के लोग थे !
ऐसे ही एक दोस्त से गौरी शंकर गुप्ता ने एक मोटी रकम, लम्बे समय के लिये उधार ली ! शायद ब्याज पर ! हालांकि उनके दोस्त ने ब्याज के लिए मना किया था !
यह बातें मुझे स्वयं गौरी शंकर गुप्ता ने तब बताईं थीं, जब मैं मनोज पॉकेट बुक्स से "भारत" नाम से प्रकाशित होने वाले उपन्यास "चांदी की दीवार" का अंत लिख रहा था ! सिर्फ अंत लिख रहा था ! उपन्यास मेरा लिखा नहीं था ! विवरण बताने के लिए आपको एक विशेष बात यह भी बतानी होगी कि मनोज पॉकेट बुक्स के संस्थापक भाइयों राज कुमार गुप्ता और गौरी शंकर गुप्ता लेखक बेशक नहीं थे, पर कहानियों के बारे में उनकी समझ और आइडियाज लाजवाब थे ! बाद में जब तीनों भाइयों के अलग-अलग प्रकाशन हो गए तो सबसे छोटे भाई विनय कुमार में भी इन खूबियों को मैंने बखूबी देखा !
चांदी की दीवार, दरअसल आरिफ मारहरवीं साहब का लिखा था ! लेकिन उसका अंत राज कुमार गुप्ता और गौरी शंकर गुप्ता दोनों को ही पसंद नहीं था और आरिफ साहब एक बार लिखने के बाद, दोबारा अपनी स्क्रिप्ट में भी हाथ नहीं लगाते थे ! वैसे भी वह उर्दू में लिखते थे और उनके उपन्यास हिंदी में ट्रांसलेट करवाकर प्रकाशित किये जाते थे !
आरिफ साहब का नाम जिन्हें अजनबी लग रहा हो, उन्हें बताना चाहूंगा कि वह बहुत ही ग्रेट हरफनमौला लेखक थे ! कभी "भयानक दुनिया" और "बुद्धिमान जासूस" जैसी पत्रिकाओं में उनके "कैसर हयात निखट्टू" उर्फ़ "मार्शल क्यू" के उपन्यास छपते थे ! उनमे कभी-कभी अंजुम अर्शी और अकरम इलाहाबादी के उपन्यास भी छपते थे !
पर जिक्र है आरिफ साहब का ! पॉकेट बुक्स की दुनिया में ट्रेडमार्क लेखकों उर्फ़ GHOST अथवा FAKE लेखकों की शुरूआत आरिफ साहब से ही हुई थी !
दरअसल पंजाबी पुस्तक भण्डार के अमरनाथ जी ने जब "स्टार पॉकेट बुक्स" की नींव रखी, तब एक बिलकुल नया लेखक इंट्रोड्यूस किया ! नाम था - राजवंश, जिसका पहला उपन्यास संभवतः "पुतली" था ! कुछ प्रकाशक द्वारा किये प्रचार तथा बहुत फ़िल्मी अंदाज़ में तेज भागते कथानक, तेज घटनाक्रम, भावुकता भरे और रोमांटिक दृश्यों का करिश्मा था कि दूसरे-तीसरे उपन्यास में ही राजवंश नाम पाठकों और पुस्तक विक्रेताओं की जुबान पर छा गया !
"राजवंश" नाम के लिए "स्टार पॉकेट बुक्स" और "आरिफ साहब" में यह समझौता हुआ कि आरिफ साहब "राजवंश" के लिए सिर्फ और सिर्फ "स्टार पॉकेट बुक्स" में ही लिखेंगे ! और "स्टार पॉकेट बुक्स" "राजवंश" नाम में आरिफ साहब के अलावा किसी और का उपन्यास नहीं छापेगी !
बाद में पंजाबी पुस्तक भण्डार और स्टार पॉकेट बुक्स में भी नई पीढ़ियां बड़ी हुईं और बँटवारा हुआ तो संभवतः स्टार पॉकेट बुक्स में छपने वाले कई नाम व उपन्यास डायमंड पॉकेट बुक्स में भी छपे !
अगर आप में से कोई अभी भी आरिफ साहब के बारे में अनजान है तो यह भी जान लीजिये कि मिथुन चक्रवर्ती द्वारा अभिनीत फिल्मे "रफ़्तार", "सुरक्षा", गनमास्टर G- 9 आदि काफी फिल्मों की कहानियां आरिफ मारहरवीं साहब की ही लिखी हुईं थी और स्क्रीन पर स्टोरी राइटर के रूप में उनके दोनों नाम “आरिफ मारहरवीं और राजवंश” आते थे ! हाँ, एक नाम ब्रैकेट में होता था !
तो बात भारत नाम से छपे उपन्यास "चांदी की दीवार" की यह थी कि यह उपन्यास लिखा तो आरिफ साहब का था, किन्तु प्रकाशित हुए उपन्यास के आखिरी साथ-सत्तर पेज मेरे द्वारा लिखे गए थे !
मनोज पॉकेट बुक्स और फरेबी दुनिया तथा डबल जासूस के लिए जब राज कुमार गुप्ता और गौरी शंकर गुप्ता लेखकों की तलाश कर रहे थे तो एक बार जब बिमल चटर्जी लाइब्रेरी के लिए किताबें लेने पहुंचे तो गौरीशंकर गुप्ता जी ने बिमल से कहा - "यार बिमल, बच्चों की कहानियां लिखने वाला कोई हो नज़र में तो बता !"
हंसमुख स्वभाव के बिमल ने तुरंत कहा - "क्या भाई साहब, बच्चों की कहानियां लिखना कौन सा मुश्किल काम है ! हमारे लोगों में तो नानियाँ-दादियां भी बच्चों को रोज नई कहानियां सुनाती हैं !"
"तू लिख सकता है ?" गौरी शंकर गुप्ता ने गंभीरता से पूछा !
अब बिमल चटर्जी हड़बड़ाए ! बोले -"कोशिश कर सकता हूँ !"
"ठीक है, कुछ कहानी लिख कर ला !" गौरी शंकर गुप्ता ने कहा !
बिमल चटर्जी की विशाल लाइब्रेरी में पुरानी बाल मासिक पत्रिकाओं और लोक कथाओं की पुस्तकों की भरमार थी ! चंदामामा, मनमोहन, राजा भैया जैसी पत्रिकाएं बहुत थीं !
बिमल चटर्जी खूब अध्ययन करके अगले हफ्ते दो कहानी लिखकर ले गए ! कहानी गौरीशंकर गुप्ता को पसंद आ गयीं ! पर उन्होंने कहा - "बिमल, स्पीड कुछ तेज़ कर ! ऐसे दो-दो कहानी लाएगा तो कैसे चलेगा ! हमें तो बहुत सारी कहानियां चाहिए ! बच्चों की पॉकेट बुक्स निकालनी हैं ! एक-एक पॉकेट बुक्स में छह-सात कहानी होनी चाहिए ! इस तरह छह या आठ-आठ किताबों के दो तीन सेट तैयार करने हैं ! हमारे दो तो टाइटल भी तैयार हैं ! इन पर भी कहानी लिख ला, पर कहानी घिसी-पिटी अकबर-बीरबल टाइप की न हो !"
और गौरीशंकर गुप्ता ने बिमल को दो टाइटल बताये –
1 - "अण्डों की खेती"
2 - "बोतल में हाथी"
मेरा बिमल से रोज ही मिलना-जुलना होता था ! खूब बातें भी होती थीं ! उस दिन जब मैं विशाल लाइब्रेरी आया तो बिमल ने मुझसे कहा -"योगेश जी, तुम तो बहुत किताबें पढ़ते हो ! कभी कोई कहानी लिखनी पड़े तो लिख भी सकते हो !"
"हाँ !" मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा और बताया कि कलकत्ते के सन्मार्ग अखबार में मेरी कहानी-कवितायें छपी भी हैं !"
और तब बिमल ने मुझे वो दोनों नाम दिए, जो गौरी शंकर गुप्ता ने उन्हें दिए थे ! "अण्डों की खेती" और "बोतल में हाथी" !
सुबह मुझे नाम दिए और शाम को मैंने बिमल को दोनों कहानी दे दीं ! बिमल हक्के-बक्के रह गए ! उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि मैंने बिना कहीं से नक़ल मारे इतनी जल्दी कहानी लिख दी है ! पर उन्होंने कुछ कहा नहीं ! उन्होंने कहानी पढ़ीं ! एक बार- फिर दोबारा ! फिर मुझसे पूछा -"योगेश जी, आप मेरे साथ बैठकर भी लिख सकते हो ?"
"हाँ !" मैंने कहा !
"तो ठीक है, कल सुबह यहां आ जाओ ! दोनों साथ बैठकर लिखेंगे ! कोई परेशानी आयी तो हम आपस में डिसकस भी कर सकते हैं !" बिमल ने कहा !
और अगले दिन से विशाल लाइब्रेरी की छोटी सी जगह में हम दोनों का साथ बैठकर लिखना आरम्भ हुआ और फिर यह सफर काफी लंबा रहा ! बिमल के लिए मैं कस्टमर नहीं रहा ! मुझे कहानियों के लिए बिमल पैसे देने लगे ! विशाल लाइब्रेरी की हर किताब मेरे पढ़ने के लिए फ्री थी !
अक्सर मेरा खाना भी बिमल के साथ होता ! मैं बिमल चटर्जी के घर का सदस्य बन गया था ! बिमल ने फिल्म देखने जाना होता तो भी मैं साथ होता ! दुर्गा पूजा के फंक्शन में बिमल और उनके दोस्तों के साथ खूब मनोरंजन होता !
गौरी शंकर गुप्ता ने बिमल को इमरान और विनोद-हमीद सीरीज के उपन्यास लिखने का काम भी दे दिया !
उनके यहां बिमल चटर्जी का लिखा पहला इमरान सीरीज का उपन्यास "बदमाशों का दुश्मन" और मेरे द्वारा लिखा "हत्यारों का बादशाह छपा ! दोनों ही उपन्यासों में लेखक का नाम एच. इक़बाल दिया गया था !
फिर एक दिन बिमल को भारती पॉकेट बुक्स में भी उपन्यास लिखने का काम मिल गया !
पर इस बारे में संयोगवश बिमल से मेरी कोई बात नहीं हुई ! उन्ही दिनों एक अखबार में MERE ने एक विज्ञापन देखा !
विज्ञापन था - जरूरत है नए लेखकों की !
और पते में - भारती पॉकेट बुक्स का नाम व पता था ! विज्ञापन देखकर भी मैंने ख़ास ध्यान नहीं दिया ! दरअसल मैं उन दिनों जो कुछ लिख रहा था, बिमल चटर्जी को ही दे देता था ! इसलिए किसी और के लिए लिखने के बारे में सोचने तक का वक्त भी नहीं था !
- योगेश मित्तल
इस श्रृंखला की पूरी कड़ियाँ निम्न लिंक पर जाकर पढ़ी जा सकती हैं:
पुरानी किताबी दुनिया से परिचय
©योगेश मित्तल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें