सवाल जवाब: फेसबुक मित्र मयूर सावला का मेरी कहानी 'प्यार तो बस प्यार है' पर एक सवाल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शनिवार, 29 मई 2021

सवाल जवाब: फेसबुक मित्र मयूर सावला का मेरी कहानी 'प्यार तो बस प्यार है' पर एक सवाल

योगेश मित्तल

फेसबुक मित्र मयूर सावला जी ने मेरी कहानी "प्यार तो बस, प्यार है" पढ़कर एक सवाल किया। सवाल और उसका मैंने जो जवाब दिया, वह आपके लिए प्रस्तुत है, जिससे आप भी कहानी और उपन्यास में अन्तर समझ पायें। 

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मयूर सावला जी का सवाल -

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सर जी, मूर्तिकार क्यों औरतों से नफरत करता था इसका कारण नहीं बताया। मूर्तिकार को कल्पना कों बिमारी में देखने के बाद उनके अच्छा होनें के लिए इश्वर से प्रार्थना की बाद में क्या वह परफेक्ट हों गई या यह कहानी का भाग नहीं था मुझे लगा इसलिए पूछ रहा हूँ। कहानी अच्छी थी।

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मेरा जवाब

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Mayur Savla 


कहानियों में कई चीजें स्पष्ट बताई नहीं जातीं, सिर्फ इशारा ही काफी होता है। प्रख्यात लेखक गोविन्द सिंह कहते थे कि पाठक लेखकों से ज्यादा अक्लमंद होते हैं। लेखक चालीस दिन लगाकर एक उपन्यास लिखता है और पाठक घंटे भर में पढ़कर, उसमें चालीस गलतियाँ निकाल देता है। 


मूर्तिकार कुबड़ा व कुरुप था। ऐसे इन्सान को उसके अच्छे व्यवहार से अगर कोई महिला पसन्द भी कर ले तो भी प्यार करेगी, यह सोचना भी गलत है। 


प्यार हर साधारण से साधारण इन्सान से किया जा सकता है, किन्तु किसी कुरुप से नहीं। कुरुप से सहानुभूति हो सकती है - प्यार नहीं। 


और एक कुरुप व्यक्ति द्वारा महिलाओं तो क्या सारे समाज को नापसन्द करना, या समाज से नफरत करना असम्भव नहीं है। फिर कहानियाँ उपन्यास नहीं होतीं, उनमें हर बात के कारण नहीं बताये जाते। अनावश्यक डिस्क्रिप्शन नहीं दिया जाता। कई बार कहानियों में अन्त भी अधूरा सा दिया जाता है  ताकि  पाठक स्वयं अनुमान लगाये। 


और कल्पना अच्छी हुई या बीमार रही या मर गई। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि कल्पना कहानी का एक सूक्ष्म सा हिस्सा है। न तो कल्पना कहानी का विषय है, ना ही मुख्य पात्र। 


और एक बार फिर ध्यान दें। कहानी उपन्यास नहीं होती। उपन्यास में बहुत सारे चरित्र होते हैं। बहुत से मुख्य पात्र होते हैं। जबकि कहानी में अमूमन एक या दो अथवा अधिक से अधिक तीन-चार मुख्य पात्र होते हैं। 


लेकिन इस कहानी में सिर्फ दो ही मुख्य पात्र हैं। कुबड़ा मूर्तिकार और उसका शिष्य...। 


विस्तारपूर्वक आपको इसलिए बताया है, जिससे नई पीढ़ी के लेखक भी कहानी और उपन्यास के फर्क को समझें और कहानी को उपन्यास की तरह ना लिखें। 


ध्यान दें - उपन्यास को आप कहानी की तरह लिख सकते हैं, लेकिन कहानी को उपन्यास की तरह नहीं लिख सकते। ना ही लिखा जाना चाहिए। 


कहानी को उपन्यास की तरह लिखने से कहानी के चरित्र मर जाते हैं। मुख्य पात्र और सहयोगी पात्र से उचित न्याय नहीं हो पाता। 

- योगेश मित्तल


नोट: आप भी अपने प्रश्न योगेश मित्तल जी को भेज सकते हैं। वह यथासंभव उनका उत्तर देने की कोशिश करेंगे। 

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