अपराध कथाएँ - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

बुधवार, 30 जून 2021

अपराध कथाएँ

शुरू-शुरू में अपराध कथाएँ का ऑफिस दुआ साहब के जनकपुरी स्थित फ्लैट में बनाया गया । जासूसी उपन्यास पढ़ने वाले दुआ साहब को "कमल अरोड़ा" नाम से अवश्य पहचान सकते हैं । 


उन्होंने "कमल अरोड़ा" नाम से काफी जासूसी उपन्यास लिखे थे ।


वहाँ  दुआ साहब के क़ानून विशेषज्ञ अधिवक्ता दामाद ने भी अपना ऑफिस बना रखा था । उसी के एक कमरे में अपराध कथाएँ का ऑफिस बना । 


बाकी सब काम तो मेरे ही जिम्मे रहे । 


बस, पत्र व्यवहार का काम दुआ साहब ने संभाल लिया । 

      

ओम प्रकाश शर्मा से ज़ुबानी पार्टनरशिप की बात हुई तो ओम प्रकाश शर्मा की किस्मत ने भी करवट ले ली । उनका DDA में एक जनता फ्लैट निकल आया । 


उसके बाद दो बातें हुईं । 


एक -

दुआ साहब अर्थात कमल अरोड़ा जी ने भी एक पत्रिका "मानसी कहानियाँ" निकालने का इरादा कर लिया । नाम रजिस्टर्ड पहले से था । रिन्यू करवा लिया और तैयारी शुरू कर दी ।


दो-

ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि जब मैं टूर पर नहीं होता, खाली होता हूँ । अपराध कथाएँ का कागजी काम, पत्र व्यवहार आदि मैं संभाल लेता हूँ और फिर ऑफिस पश्चिमपुरी के जनता फ्लैट में शिफ्ट करने का निर्णय किया गया ।


उस फ्लैट को ठीक-ठाक करने के लिए मुझे उस फ्लैट में भेजा गया । 


मैं अपने ही घर से एक चारपाई एक गद्दा, चादर, दो तकिये, रजाई तथा दो फोल्डिंग कुर्सियाँ लेकर वहाँ गया ।   


और काफी दिनों तक मैं उस फ्लैट में अकेला ही रहा । अपराध कथाएँ का काम तथा अन्य लेखन वहीं रहकर करता । पेट भरने के लिए कभी बाजार में छोले भठूरे तो कभी दाल-रोटी खरीद कर खाता । चाय भी बाजार से ही पीनी होती थी ।


कमलकांत सीरीज का पहला उपन्यास "चक्रव्यूह" सबसे पहले धारावाहिक रूप से अपराध कथाएँ में छपना शुरू हुआ था । कई बार अपराध कथाएँ के फ्रंट कवर के इनर तथा पहले पृष्ठ पर कमलकांत सीरीज के हाहाकारी उपन्यास "चक्रव्यूह" का विज्ञापन दिया गया । 

अपराध कथाएँ में छपा राजभारती जी के उपन्यास का विज्ञापन



शेष फिर।
जय श्रीकृष्ण।

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