शुरू-शुरू में अपराध कथाएँ का ऑफिस दुआ साहब के जनकपुरी स्थित फ्लैट में बनाया गया । जासूसी उपन्यास पढ़ने वाले दुआ साहब को "कमल अरोड़ा" नाम से अवश्य पहचान सकते हैं ।
उन्होंने "कमल अरोड़ा" नाम से काफी जासूसी उपन्यास लिखे थे ।
वहाँ दुआ साहब के क़ानून विशेषज्ञ अधिवक्ता दामाद ने भी अपना ऑफिस बना रखा था । उसी के एक कमरे में अपराध कथाएँ का ऑफिस बना ।
बाकी सब काम तो मेरे ही जिम्मे रहे ।
बस, पत्र व्यवहार का काम दुआ साहब ने संभाल लिया ।
ओम प्रकाश शर्मा से ज़ुबानी पार्टनरशिप की बात हुई तो ओम प्रकाश शर्मा की किस्मत ने भी करवट ले ली । उनका DDA में एक जनता फ्लैट निकल आया ।
उसके बाद दो बातें हुईं ।
एक -
दुआ साहब अर्थात कमल अरोड़ा जी ने भी एक पत्रिका "मानसी कहानियाँ" निकालने का इरादा कर लिया । नाम रजिस्टर्ड पहले से था । रिन्यू करवा लिया और तैयारी शुरू कर दी ।
दो-
ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि जब मैं टूर पर नहीं होता, खाली होता हूँ । अपराध कथाएँ का कागजी काम, पत्र व्यवहार आदि मैं संभाल लेता हूँ और फिर ऑफिस पश्चिमपुरी के जनता फ्लैट में शिफ्ट करने का निर्णय किया गया ।
उस फ्लैट को ठीक-ठाक करने के लिए मुझे उस फ्लैट में भेजा गया ।
मैं अपने ही घर से एक चारपाई एक गद्दा, चादर, दो तकिये, रजाई तथा दो फोल्डिंग कुर्सियाँ लेकर वहाँ गया ।
और काफी दिनों तक मैं उस फ्लैट में अकेला ही रहा । अपराध कथाएँ का काम तथा अन्य लेखन वहीं रहकर करता । पेट भरने के लिए कभी बाजार में छोले भठूरे तो कभी दाल-रोटी खरीद कर खाता । चाय भी बाजार से ही पीनी होती थी ।
कमलकांत सीरीज का पहला उपन्यास "चक्रव्यूह" सबसे पहले धारावाहिक रूप से अपराध कथाएँ में छपना शुरू हुआ था । कई बार अपराध कथाएँ के फ्रंट कवर के इनर तथा पहले पृष्ठ पर कमलकांत सीरीज के हाहाकारी उपन्यास "चक्रव्यूह" का विज्ञापन दिया गया ।
अपराध कथाएँ में छपा राजभारती जी के उपन्यास का विज्ञापन |
शेष फिर।
जय श्रीकृष्ण।
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