अशोक शर्मा के फेसबुक पर दिए कमेन्ट पर कुछ और बातें याद आ गईं पेश हैं
अशोक शर्मा जी का कमेन्ट
बाप रे... ।
एक साथ इतने उपन्यास ।
इतने उपन्यास एक साथ लिखना मेरी नजर में तो असंभव ही है ।
और ये असंभव इसलिए लिख रहा हूँ, क्यों कि मैं भी एक उपन्यासकार रह चुका हूँ और मेरे उपन्यास राजा पॉकेट बुक्स और राधा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हो चुके है । पर इतने तो क्या, मात्र दो उपन्यास भी एक साथ लिखना मेरे लिए तो असंभव ही था।
मान गए उस्ताद। चाचा चौधरी की तरह आपका दिमाग भी कंप्यूटर से तेज चलता है ।
लिखते रहिएगा।
पढ़कर सचमुच बहुत मजा आता है।
आपके संग मैं भी उपन्यासों की पुरानी दुनिया में पहुँच जाता हूँ।
अशोक जी के कमेन्ट पर याद आई कुछ बातें
पता नहीं कैसे उस समय ऐसा कर पाया। माता सरस्वती की तो मुझ पर बचपन से ही असीम कृपा रही।
पर सबसे मुश्किल काम उस समय यह था कि कहानी के लिंक में कोई गड़बड़ी न रहे। दो- दो पेज करके लिखने और मैटर प्रेस में देते रहने में एक मुसीबत यह भी थी कि जो लिख दिया, सो लिख दिया। कथानक समाप्त करते हुए कुछ छूट गया। कोई गलती रह गई तो बाद में सुधारने की कोई गुंजाइश नहीं थी। बाल उपन्यास, चूँकि पाँच पाँच फार्म के थे (अस्सी पेज) इसलिए उनमें तो गलती रह जाने की सम्भावना नहीं थी, पर बड़े उपन्यासों में ईश्वर ने ही बचाया। एक उपन्यास 'प्रेम का खिलाड़ी' जरूर दो पार्ट का बन गया था।और अधजली लाश में मैटर ज्यादा लिखा गया था तो गंगा पाकेट बुक्स के स्वामी सुशील जैन ने उसका मैटर बचा कर, उसे जबरदस्ती पार्ट का बना दिया था।
आज तो मैं भी यही सोचता हूँ कि बाप रे, कैसे लिखे गये थे सारे उपन्यास और प्रकाशकों से गालियाँ भी नहीं मिलीं, बल्कि चंचल नाम से छपे 'तुम्हारे लिए' और बेगम कानपुरी नाम के लिए लिखे गये 'बेवफा' को सतीश जैन ने बहुत पसन्द किया था।
एक बात और उन दिनों बिमल चटर्जी, परशुराम शर्मा, आबिद रिज़वी, वेदप्रकाश शर्मा के साथ भी कई बार ऐसा अवसर आया था, जब एक-एक दो-दो फार्म लिख-लिख मैटर प्रेस में देते रहना पड़ता था।
पर एक साथ एक से अधिक उपन्यास लिखने वाला बकरा बनने की नौबत मेरे साथ ही आई थी।
उन दिनों चन्द्रकिरण जैन के पिताजी, मेरे प्रकाशक और मकानमालिक को मुझ पर बहुत तरस आता था और वो मुझसे कहते थे- अपने शरीर और दिमाग को इतना मत थका, पागल हो जायेगा। और लोगों को मना करना सीख, मना करने से तू छोटा नहीं होगा, बड़ा लेखक ही बनेगा।
उनका नाम भूल रहा हूँ। चन्द्रकिरण जैन, राकेश जैन, मनेश जैन या मेरठ के कोई अन्य साथी याद दिला दें तो अच्छा लगेगा।
-योगेश मित्तल
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