एन एस धिम्मी और राज भारती - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

एन एस धिम्मी और राज भारती

 दिल्ली में थ्रीव्हीलर चलते आप सबने देखें ही होंगे । 


क्या आप यकीन करेंगे कि पॉकेट बुक्स के टाइटल कवर और कॉमिक्स जगत के एक बहुत ग्रेट आर्टिस्ट एन. एस. धम्मी किसी समय थ्रीव्हीलर चलाते थे । 


दिल्ली में बलजीतनगर, शादीपुर डिपो के ठीक पीछे है और उसी के बाद है वेस्ट पटेलनगर । 


धम्मी साहब बलजीत नगर रहते थे और भारती साहब वेस्ट पटेलनगर  में ।


उन दिनों टीवी, इंटरनेट, मोबाइल कुछ नहीं था । टाइम पास करने का सस्ता साधन फ़िल्में और उपन्यास, पत्रिकाएं आदि थीं ।   


किताबें पढ़ने का शौक धम्मी साहब को भी था । और राज भारती उनके पसंदीदा लेखकों में उस समय नंबर वन ही थे । भारती साहब की विजय-सागर सीरीज उस समय पाठकों की पसंद में बहुत तेजी से लोकप्रियता के आयाम छू रही थी ।


कारण कई थे ।


उन दिनों के प्रसिद्ध लेखकों के उपन्यास चरित्रों में ओम प्रकाश शर्मा के जगत और जगन जैसे चरित्रों के अतिरिक्त अधिकांशतः सभी आदर्शवादी  चरित्र थे, लेकिन राज भारती का सागर रोमांटिक, हंसोड़ और खूंख्वार भी, कुछ-कुछ जेम्स बांड टाइप चरित्र था, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया ।


एन. एस. धम्मी को भी राज भारती का सागर बहुत पसंद था । यह एक बार एन.एस. धम्मी ने खुद ही मुझसे कहा था । लिहाजा एन. एस. धम्मी ने भारती साहब से मिलना-जुलना शुरू किया तो एक दिन धम्मी साहब ने जिक्र कर दिया कि उन्हें ड्राइंग का बहुत शौक है ।  


भारती साहब ने उत्साह बढ़ाया तो धम्मी साहब ने कवर डिज़ाइन बनाये । बाद में धम्मी साहब बहुत कामयाब पॉकेट बुक्स आर्टिस्ट रहे, पर भारती साहब के हमेशा मुरीद और प्रशंसक रहे । भारती साहब के काफी डिज़ाइन धम्मी साहब ने बनाये । जब बाल कॉमिक्स का दौर शुरू हुआ तो धम्मी सबसे ज्यादा कॉमिक्स तैयार करने और करवाने वाले आर्टिस्ट थे ।    


पर धम्मी साहब के उन शुरुआती दिनों में कवर डिज़ाइन में चड्ढा,  इंद्रजीत और कई अन्य मशहूर आर्टिस्ट थे और कृष्णनगर के इन्दर भारती भी पॉकेट बुक्स लाइन के लिए उदीयमान थे ।


धम्मी साहब ने डिज़ाइन बनाये और भारती साहब को दिखाए । भारती साहब ने धम्मी साहब के डिज़ाइन लिए । उन्हें पारिश्रमिक भी दिया, डिज़ाइन ठीक-ठाक थे, पर बात बहुत ज्यादा शायद जमी नहीं ।


और यह खुद धम्मी साहब को ही अधिक महसूस हुआ ।


उन दिनों पहाड़ी धीरज की गली बरना में फिल्मों के होर्डिंग ( बोर्ड ) बनाने वाले आर्टिस्ट भाई पृथ्वी सोनी और महेंद्र सोनी रहते थे । 


धम्मी साहब की उनसे कैसे जान-पहचान हुई, मुझे नहीं मालूम । पर धम्मी साहब पहले थ्रीव्हीलर चलाते थे और मेरा ख्याल है, जहाँ चाह होती है, वहीं राह होती है । कभी हो गयी होगी पहचान और धम्मी साहब ने पृथ्वी सोनी जी को गुरु बना लिया ।


बाद में पृथ्वी सोनी ने तिमारपुर में किराए की जगह में एक बड़ा स्टूडियो बना लिया । धम्मी साहब घर खर्च के लिए थ्रीव्हीलर चलाते और टाइम निकाल कर अपना हाथ कलाकारी में निपुण करने लगे ।


भारती साहब ने पृथ्वी सोनी और उनके भाई महेन्दर सोनी को भी पॉकेट बुक्स के दिग्गजों से परिचित करवाया और उन्होंने काफी कवर टाइटल बनाये ।


पृथ्वी सोनी बाद में बॉम्बे भी गए और फिल्मो में भी अपनी कला के जलवे बिखेरे । एक फिल्म में वह एक्टिंग करते भी नज़र आये ।


वह थी राजकुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, मौसमी चटर्जी की 1980 में आई फिल्म “चम्बल की कसम” । उसमे एक डाकू के रूप में उनका कुछ ही क्षण का रोल था ।  


- योगेश मित्तल

©योगेश मित्तल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें