शालयार खान और मायाजाल के बाद तीसरी कड़ी दरिंदा एक मील का पत्थर था ।
आँचल पब्लिकेशन के प्रकाशन बैनर द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास का डिस्ट्रीब्यूशन विजय पॉकेट बुक्स द्वारा किया गया । उपन्यास 704 पृष्ठों का था और उस समय इसकी कीमत मात्र पंद्रह रुपये थी ।
टाइटल कवर के बाद पहले पृष्ठ पर लिखा था राज भारती प्रेजेंट्स और तीसरे पृष्ठ पर दरिंदा का स्केच डिज़ाइन था ।
कवर टाइटल और तीसरे पेज का डिज़ाइन दिल्ली, बलजीतनगर के आर्टिस्ट एन. एस. धम्मी ने बनाये थे और राजभारती प्रेजेंट्स, सुभाषनगर के उन दिनों पंद्रह-सोलह बरस के आर्टिस्ट सरदार परविंदर मिचरा ने तैयार किया था ।
बाद में राज भारती जी ने "राजभारती का मायाजाल" नाम की पत्रिका भी निकाली थी, तब आर्टिस्टों द्वारा तैयार करवाए गए बहुत से डिज़ाइन मेरे पास रखवा दिए थे । पत्रिका की प्रूफरीडिंग से एडिटिंग सभी काम मेरे जिम्मे थे । सम्पादक के रूप में नाम भी मेरा डाला गया ।
तब के कुछ डिज़ाइन अचानक सामने आ गए और दरिंदा उपन्यास की याद आ गयी ।
दरिंदा उपन्यास के बाद राज भारती और विजय पॉकेट बुक्स के स्वामी विजय कुमार मल्होत्रा का लंबा साथ रहा ।
अग्निपुत्र सीरीज के कई उपन्यास विजय पॉकेट द्वारा भी छापे गए, किन्तु अग्निपुत्र सीरीज को सर्वाधिक छापा मेरठ के धीरज पॉकेट बुक्स के राकेश कुमार जैन ने ।
विजय पॉकेट बुक्स द्वारा राज भारती द्वारा लिखे सामाजिक उपन्यास लम्बे समय तक भारती साहब की तस्वीर के साथ "सावन" के उपनाम से छापे । इसके अलावा एस. कुमार और "प्रियजीत चौधरी" नाम से भी राज भारती ने बहुत उपन्यास लिखे । यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं ।
शेष फिर ।
जय श्रीकृष्ण ।
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