मेरी आजादी | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

सोमवार, 16 अगस्त 2021

मेरी आजादी | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता

मेरी आजादी | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता
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आँखों  में  दहशत  के  साये, 

डर  है  ये   किस  बरबादी   का। 

जाने  क्यों  अब  फीका  सा  है

यह  जश्न   मेरी   आजादी   का। 


कोई खुलकर बात नहीं करता, 

कोई खुलकर नहीं अब मुस्काता। 

मैं  हंसना  भी  यदि  चाहूँ  तो, 

जाने    क्यों    रोना    है   आता।


रिश्ते नातों में कुछ पता नहीं, 

कौन अपना है - कौन है दुश्मन?

अब यारी में भी सियासत है, 

पार्टी - पार्टी  के  हो रहे हैं  मन।


भूखी  जनता  लगती  झूठी, 

लगें   उनके   आँसू   घड़ियाली। 

सूरज की आँखें -  फूट गईं, 

है  बलात्कारी,  हर  रात काली। 


सांसें   लेना   अपराध   हुआ, 

जीना   फांसी   का   फन्दा   है। 

मैं सच को अगर सच कह दूँ तो, 

सब  कहते  हैं - यह  अन्धा  है।


आँखों   वालों   की   दुनिया में, 

हर   तरफ  अन्धेरा   फैला   है। 

क्यों  मेरी  आजादी  घायल  है, 

क्यों   मेरा   झण्डा   मैला   है? 


- योगेश मित्तल

2 टिप्‍पणियां:

  1. सांसें लेना अपराध हुआ,
    जीना फांसी का फन्दा है।
    मैं सच को अगर सच कह दूँ तो,
    सब कहते हैं - यह अन्धा है

    आज की कड़वी सच्चाई बयान कर दी मित्तल जी आपने। बहुत अच्छी, सचमुच बहुत ही अच्छी कविता है यह आपकी - कोई बनावट नहीं, कोई आडम्बर नहीं, कोई मौके के मुताबिक कही जाने वाली ऐसी बात नहीं जो बस देखने में ही अच्छी हो। सच और केवल सच ही है इस कविता में। और ऐसी कविता रचना ही कवि का वास्तविक धर्म है।

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    1. शुक्रिया भाई, खुशी हुई कि देश, काल और समय के अनुरूप निकली, दिल की कड़वाहटों को आपने गहराई से समझा और सराहा!
      यह सकारात्मक लेखन के लिए प्रोत्साहन ही तो है!
      हार्दिक धन्यवाद व प्रणाम!

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