तब दरीबाँ कला दो बातों के लिए मशहूर था !
एक तो वहाँ ज्वैलरी की बहुत दुकानें थीं,
दूसरे पुस्तकों के थोक बिक्रेताओं का यही एक गढ़ था !
इसके अलावा दो और खासियत थीं दरीबे की !
एक तो हीरा टी स्टाल, जिसकी चाय का स्वाद घर की चाय से भी बेहतर होता था ! चाय की सतह पर दूध की मलाई का स्वाद भी हीरा टी स्टाल की चाय में उठाया जा सकता था !
दूसरी खासियत थी दरीबे में प्रवेश के नुक्कड़ पर स्थित हलवाई की दुकान, जिसका नाम अब याद नहीं !
देशी घी की जलेबी और समोसे के लिए वह दुकान काफी मशहूर थी !
मुझे नहीं पता कि अब भी ये हैं या नहीं !
तो हमारी दिलचस्पी तो पुस्तकों में है तो आगे की बात पुस्तकों की ही हो जाये !
दरीबे में राज पुस्तक भंडार, नारंग पुस्तक भंडार, गर्ग एंड कम्पनी, रतन एंड कम्पनी, पंजाबी पुस्तक भंडार आदि पुस्तकों के थोक बिक्रेताओं की दुकानें थीं, जहाँ से पुस्तकें खरीदने दिल्ली के नहीं दिल्ली के नजदीकी क्षेत्रों के पुस्तक बिक्रेता आया करते थे !
मनोज पाॅकेट बुक्स, राजा पाॅकेट बुक्स और मनोज पेपरबैक्स आज बेहद प्रतिष्ठित प्रकाशकों में से हैं, पर बहुत कम लोग जानते हैं कि इनके उत्थान में परिवार के सबसे बड़े भाई राजकुमार गुप्ता और स्वर्गीय गौरीशंकर गुप्ता की जीतोड़ मेहनत और बुद्धि का विशेष योगदान रहा है ! इस बारे में विस्तार से फिर कभी ! फिलहाल मुख्य बातें ही ठीक हैं !
अब मैं पहले अपने लेखकीय जीवन की शुरुआत के बारे में बताना चाहूँगा !
मेरा बचपन कलकत्ते में बीता था ! वहीं अपर चितपुर रोड स्थित
श्रीडीडू माहेश्वरी पंचायत विद्यालय में पढ़ते हुए पहली बार लिखने का कीड़ा जन्मा !
जब मैं पाँचवीं कक्षा में था, तब कलकत्ते के अखबार सन्मार्ग में मेरी कुछ कविताएँ व कहानियाँ छपीं ! फिर जब छठी- सातवीं में था तो स्कूल की वार्षिक पत्रिका "सरोज" में भी कहानी व कविता छपीं !
पर जब दिल्ली आना और गांधीनगर में रहना हुआ, मेरी पहचान बिमल चटर्जी से हुई !
बिमल चटर्जी की उन दिनों गांधीनगर की अशोक गली में
“विशाल लाइब्रेरी” नाम की किताबों की दुकान थी और वह लेखक बिल्कुल नहीं थे ! ना कभी उन्हें बचपन में लिखने-लिखाने का शौक रहा था !
हाँ, गाना गाने के वह शौक़ीन थे ! किशोर कुमार और मन्ना डे के गाने बहुत ही सुन्दर ढंग से, बेहद मधुर आवाज़ में गाते थे !
उनके छोटे भाई अशीत चटर्जी भी कम नहीं थे ! गाने के अलावा मेज थपथपाकर तबला भी खूब बजाते थे !
लाइब्रेरी चलाते हुए बिमल चटर्जी दस पैसे रोज के किराये पर किताबें पढ़ने के लिए देते थे और मैं शुरु से ही किताबों का कीड़ा रहा था, किताब कैसी भी हो, कहानी की हो या किसी भी अन्य विषय की, हाथ लग जाये तो पूरी पढ़े बिना नहीं छोड़ता था !
अत: पहले बिमल चटर्जी की विशाल लाइब्रेरी का ग्राहक बना, फिर दोस्ती हुई, जो आगे चलकर प्रगाढ़ रिश्तों में बदल गई ! और बिमल चटर्जी के लिए मैं छोटा भाई बन, उनके परिवार का हिस्सा बन गया !
बिमल किताबें लेने दरीबे जाया करते थे ! यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि मनोज पाॅकेट बुक्स के संस्थापकों में से एक सबसे बड़े भाई
श्री राजकुमार गुप्ता जी की पहले पहल दरीबे में रद्दी की दुकान हुआ करती थी ! पुराने अखबारों, काॅपी, किताबों की रद्दी खरीदने, फिर उसे रद्दी के बड़े खरीददारों को बेचने की !
राजकुमार गुप्ता और उनके मँझले भाई गौरीशंकर गुप्ता किताबें पढ़ने के विशेष शौकीन थे ! सबसे छोटे भाई विनय कुमार उन दिनों बहुत छोटे थे !
दरीबा थोक पुस्तक बिक्रेताओं का गढ़ था ! अत: रद्दी का काम छोड़ने का विचार करते हुए पहले राजकुमार गुप्ता ने राज पुस्तक भंडार द्वारा थोक में पुस्तकें बेचनेवालों की कतार में स्वयं को भी खड़ा किया !
बिमल चटर्जी जब अपनी विशाल लाइब्रेरी के लिए पुस्तकें खरीदने दरीबे आते तो अधिकांशतः नारंग पुस्तक भंडार तथा राज पुस्तक भंडार से पुस्तकें खरीदते ! तब नारंग पुस्तक भण्डार के मालिक चन्दर प्रकाश नारंग हुआ करते थे, जो किसी से भी दोस्ती कर लेने के हुनर में बाकमाल काबिलियत रखते थे ! बाद में यह खूबी मैंने चन्दर भाई के छोटे भाई में भी नोट की !
किताबी दुनिया में राज कुमार गुप्ता के प्रवेश के बाद, ग्रेजुएशन करने के बाद मँझले भाई गौरीशंकर गुप्ता ने भी कारोबार में बड़े भाई का हाथ बँटाना शुरु कर दिया था !
दोनों भाई जबरदस्त महत्वाकांक्षी थे !
एक दिन दोनों ने ठाना कि क्यों न वह किताबें छापनी शुरु कर दें !
उन दिनों बच्चों की पत्रिकाओं व पुस्तकों का मार्केट बहुत अच्छा था !
गर्ग एंड कम्पनी से प्रकाशित होनेवाली गोलगप्पा पत्रिका में मेरी कई कहानियाँ छप चुकी थीं !
बाल पाॅकेट बुक्स प्रकाशित होने की शुरुआत भी हो चुकी थी !
राज भारती पटेलनगर से रंगा-गंगा सीरीज़ की कुछ मिनी पाॅकेट बुक्स छाप चुके थे, जिनमे कुछ उन्होंने भी लिखी थीं ! पर उनमें अपना नाम सम्भवतः नहीं दिया था !
पर बाल जासूसी पाॅकेट बुक्स में सबसे धमाकेदार नाम उन्हीं दिनों उभरा था - एस. सी. बेदी, जिनकी राजन-इकबाल सीरीज़ ने बाद में लम्बे अर्से तक बच्चों में धूम मचाये रखी !
उन दिनों उपन्यास पत्रिकाओं का भी जमाना था, जैसे इलाहाबाद से छपनेवाली जासूसी दुनिया मासिक पत्रिका थी और उसमें पाकिस्तान में रहनेवाले इब्ने सफी के उपन्यास हिन्दी व उर्दू में छापे जाते थे ! ये सभी पत्रिकाएँ सस्ते अखबारी कागज पर छपती थीं !
उन दिनों एक नाम एच. इकबाल भी पाठकों के सामने आया और एन. सफी और नज़मा सफी नाम से भी भिन्न- भिन्न प्रकाशक विनोद-हमीद अथवा इमरान सीरीज़ के उपन्यास छापने लगे थे ! मतलब एक तरह से GHOST और FAKE लेखकों का ज़माना आरम्भ हो गया था ! लिखता कोई था, लेकिन पुस्तकें लिखने वाले के नाम से ना छपकर, किसी भी बिकाऊ नाम से छपती थीं !
राज कुमार गुप्ता और गौरीशंकर गुप्ता का प्रकाशक बनने का सफर भी कुछ ऐसे ही शुरु हुआ ! राज कुमार गुप्ता ने फरेबी दुनिया तथा डबल जासूस नाम से जासूसी पत्रिकाएं रजिस्टर्ड करवाईं !
तभी इलाहाबाद की दुनिया से दिल्ली आये एक रोमांटिक-सामाजिक लेखक "प्रेम बाजपेयी" राज कुमार गुप्ता जी के संपर्क में आये या उन्होंने स्वयं दिल्ली आकर रहने वाले "प्रेम बाजपेयी" से संपर्क किया, क्योंकि वह प्रेम बाजपेयी की लेखनी के बहुत बड़े प्रंशसक थे !
"प्रेम बाजपेयी" के उपन्यास "अमला और कैंची" अथवा "कैंची और नारी" उन दिनों बेहद चर्चित उपन्यासों में से एक थे !
राज कुमार गुप्ता और गौरी शंकर गुप्ता ने निर्णय लिया था कि प्रकाशन क्षेत्र में उतरना है तो पूरी क्षमता के साथ उच्च स्तर की कहानियां एवं अच्छे कवर डिज़ाइन, प्रोडक्शन के साथ मैदान में कूदना होगा, लेकिन तब उनके पास फाइनेंस की कमी थी ! अपना मकान भी नहीं था ! वकीलपुरे में एक किराए की जगह में रहते थे !
मैं उन गिनती के लेखकों व लोगों में से एक हूँ, जिसे वकीलपुरे में उनके घर में भी जाने का अवसर मिला था !
भारती पॉकेट बुक्स से प्रकाशित एक किताब का बैककवर |
क्रमशः
- योगेश मित्तल
इस श्रृंखला की पूरी कड़ियाँ निम्न लिंक पर जाकर पढ़ी जा सकती हैं:
पुरानी किताबी दुनिया से परिचय
©योगेश मित्तल
अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद....
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