तुम्हारे नाम का पत्थर - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

बुधवार, 27 जनवरी 2021

तुम्हारे नाम का पत्थर

 

तुम्हारे नाम का पत्थर | योगेश मित्तल | हिन्दी कविताImage by Capri23auto from Pixabay
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नहीं कहूँगा - तुम्हारा अक्स,
आँखों    में     समाया     है!
 
नहीं   कहूँगा,   मैं   यह  भी
तुम्हें   दिल   में   बसाया  है! 

तुम्हारे   नाम   का   पत्थर, 
मैंने   दिल   में   लगाया   है! 

कयामत  तक  न  उखड़ेगा, 
उसी   ने    यह   बताया   है! 
- योगेश मित्तल


© योगेश मित्तल 

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