फेसबुक पर... - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

फेसबुक पर...

फेसबुक पर | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल
Image by Gerd Altmann from Pixabay 

अगर सगा रिश्ता न हो तो
मिलती  बहुत  मलानत  है! 
फेसबुक पर प्यार जताना, 
मूर्खता   भरी  हिमाक़त  है!
 
चाहे  आपका मन सच्चा हो
दुनिया  तो   यह   पापी   है! 
जीवन  की  हर भागदौड़ में
होती    तो   आपाधापी   है! 

मुंहबोली  कोई   बहन  हो  या
वो  बहुत  प्यारी   भौजाई   हो! 
सोशल मीडिया पर सबके बीच,
करो न चर्चा  कि जगहँसाई हो! 

अगर किसी की तारीफ में तुम
कोई   कविता   लिख   डालो! 
अपनी प्रशंसा की खातिर मत
फेसबुक   पर  उसे   उछालो! 

लोग   गढ़ेंगे    किस्से    और 
कुछ  का  कुछ  कह  डालेंगे! 
मुँहबोली बहन - भौजाई को, 
तुम्हारी    भी   कह   डालेंगे!
 
शब्दों   की   मर्यादा   सीखो, 
महिलाओं   का   मान   करो! 
फेसबुक पर  तुम अपनी ही, 
माँ - बीवी का  गुणगान करो! 

बहुत प्यार है तो व्हाट्सएप
पर,  रचना   प्रेषित  करना! 
अपनी शान बढ़ाने के लिए, 
नारी को न कलंकित करना! 

सोशल मीडिया पर शब्दों की
सीखो   मर्यादा   भी   रखनी ! 
तुम अच्छे इन्सान न हो, पर
पावन  रखो  अपनी   लेखनी! 

- योगेश मित्तल

© योगेश मित्तल 

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