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जब भी मैं कुछ लिखने लगता हूँ,
हाथ अचानक रुक जाते हैं!
जो भी लिखूँ - सच ही लिखूँ,
शब्द - कलम यह धमकाते हैं!
अगर गलती से गलत लिख दिया,
मेरी कलम ठहर जाती है!
कितनी भी मैं कोशिश कर लूँ,
जरा न आगे बढ़ पाती है!
अगर कहीं अन्याय हो रहा,
कलम शोर मचाने लगती!
मेरे शब्द इन्कलाबी हो उट्ठें,
ऐसा क्रोध बढ़ाने लगती!
कोई भूखा कहीं न सोये,
मुझसे मेरी कलम कहती है!
कोई रोग से दुखी न होये,
कहकर कलम, दुखी रहती है!
कोख में बिटिया दम न तोड़े,
दर्द सहे न बलात्कार का!
और दहेज़ में जले कहीं न,
जीवन पाये सदा प्यार का!
हरेक हाथ को - काम मिले और
युवा कोई बेरोजगार न रहे!
कहे कलम, ऐसा कुछ लिक्खूं
देश में नाकारा सरकार न रहे!
- योगेश मित्तल
© योगेश मित्तल
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