मिडिल क्लास आदमी की व्यथा | हिन्दी कविता - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

मिडिल क्लास आदमी की व्यथा | हिन्दी कविता

मिडिल क्लास की व्यथा | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता
Image by Shreyas Ganapule from Pixabay 



दो  चार  घड़ी - जीने के लिए, 
सौ  बार  रोज   मरता   हूँ  मैं! 
और दो  रोटी की  खातिर भी, 
जाने क्या  नित  करता  हूँ  मैं!
 
हर रोज़ सुबह से शाम तलक, 
झूठ   के    बाग    उगाता   हूँ!
फिर अपनी लाश सम्भाले हुए
बिस्तर  पर  ढेर  हो  जाता  हूँ! 

बच्चों  की  फरमाइश  सुनकर, 
वादों   की   झड़ी   लगाता   हूँ! 
कैसे   भी   उनके   चेहरों   पर, 
अक्सर  मुस्कान  ले  आता  हूँ! 

पत्नी  के  आँसुओं  को हरदम, 
अनदेखा  -  सा   कर  देता  हूँ! 
दफ्तर में  गालियाँ खा-खाकर, 
उर्जा   खुद   में   भर  लेता  हूँ! 

कोई मेरी व्यथा - क्या जानेगा, 
हूँ  मिडिल क्लास मामूली नर! 
आधा  पेट  रोज खाते - खाते, 
जाने   कब   मैं  जाऊँगा  मर! 

योगेश मित्तल

©योगेश मित्तल

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