![]() |
वेद प्रकाश शर्मा की एक तस्वीर जो मैंने खींची थी |
फेसबुक फ्रेंड आदरणीय शिखा अग्रवाल जी ने मेरी एक पोस्ट के कमेन्ट बाक्स में लिखा....
सर, वेद प्रकाश शर्मा जी ने लिखा था कि उन्होंने एक नॉवल एक ही रात में लिखा था, जिसके उन्हें 100 रुपये मिले थे, वो नॉवेल उनके नाम से नहीं छपा था, अब सही है या गलत......ये पता नहीं...?
वेद से मेरा दोस्ताना तब हो गया था, जब उसके नाम से दहकते शहर या जो भी नाम से - उसका पहला उपन्यास छपने वाला था!
और मुझे वेद के साथ बैठ कर लिखने का अवसर कई बार मिला है, इसलिए शिखा जी की बात का मुझसे बेहतर जवाब कोई दूसरा सम्भवतः नहीं दे सकता!
तो मैंने शिखा जी से कहा है कि हो सकता है.....
हो सकता है......यह वर्ल्ड रिकॉर्ड ही हो!
दरअसल उन दिनों मेरठ में आठ फार्म के उपन्यास पच्चीस लाइनों से छपते थे अर्थात एक उपन्यास में दिल्ली के उपन्यासों से लगभग दो सौ चवालीस लाइनें कम लिखनी होती थीं और तब पेज जल्दी जल्दी भरने के लिए वेद प्रकाश शर्मा और मेरे जैसे लेखक भी जहाँ पर नोंक झोंक या वार्तालाप होता तो दो-दो चार-चार शब्दों मे लाइनें पूरी कर देते थे!
उदाहरण :
"अबे झानझरोखे....!"
"क्या है...?"
"भूख लग रही है!"
"तो मैं क्या करूँ...?"
"यार, कहीं से गरम गरम समोसे..! "
"नहीं मिल सकते!"
"क्यों यार...?"
"रात के बारह बज रहे हैं!"
"हांय, इतनी जल्दी बारह भी बज गये?"
"जल्दी नहीं, बारह अपने टाइम पर बजे हैं!
" तो यार, सूइयाँ पीछे खिसका दे!"
"उससे क्या होगा?"
"समय पीछे चला जायेगा!"
"मगर समोसे की दुकान, फिर भी नहीं खुलेगी!"
मेरा ख्याल है शिखा जी और सभी मित्रगण, वह समझ गये होंगे, जो मैं समझाना चाहता हूँ!
तब बहुत से उपन्यासों में ऐसी ही बेगार काटने वाली लाइनें होती थीं, जिनका मूल कहानी से कोई सम्बन्ध नहीं होता था, फिर भी वे कहानी आगे बढ़ाती थीं!
और खास बात यह कि जब वेद प्रकाश शर्मा का लेखन सफर आरम्भ हुआ था, उनमें लम्बी सीटिंग लगाने की जबरदस्त उर्जा थी! क्षमता थी! आदत थी!
एक बार.... सिर्फ एक बार उनके स्वामीपाड़ा स्थित किराये के घर की एक परछत्ती में उनके साथ बैठकर लिखने का अवसर मिला था! अवसर बाद में भी मिले, पर बहुत सालों बाद उनके डीएन कालेज के सामने वाले आफिस में या शास्त्री नगर के आफिस में!
स्वामीपाड़ा - वेद के घर मैं उनसे मिलने गया था! तभी मूसलाधार बारिश होने लगी थी!
तब हमने साथ में ही खाना खाया था और बारिश को देखते हुए वेद प्रकाश शर्मा जी ने ही कहा- "टाइम क्यों वेस्ट करें! कुछ लिखते हैं!"
मुझे पेन और कागज भी वेद ने ही दिये!
खास बात यह रही कि आरम्भ में जितनी देर में मैंने चार पेज लिखे, वेद दस पेज लिख चुके थे!
वह एक घंटे में आठ से दस-ग्यारह पेज तक लिख लेते थे और आठ-आठ घंटे की सीटिंग लगा लेते थे!
और जिस दिन नाइट लगाते थे अर्थात पूरी रात लिखते थे, तब रात नौ बजे से पहले खाना-पीना निपटा कर अपने कमरे में बन्द हो लेते थे और सुबह सात बजे तक लिखते रहते थे!
उसके बाद नित्य कर्म से फ्रेश होने-नहाने के बाद कुछ नाश्ता करके दो घंटे की नींद लेते थे! फिर उठकर दोबारा लिखना शुरू कर देते थे!
पर यह उनके आरम्भिक दिनों की बात है, जब उनकी शादी नहीं हुई थी! शादी के बाद की दिनचर्या मुझे नहीं मालूम!
शादी से पहले वेद प्रकाश शर्मा ने कोई या कई उपन्यास एक ही दिन में लिखें हों, यह असम्भव नहीं है!
- योगेश मित्तल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें