मुम्बई, भिवंडी के मयूर सावला जी ने मुझसे बहुत से उपन्यासकारों के बारे में एक सवाल पूछा! उन्हें जो जवाब दिया, आप भी पढ़िये!
जासूसी उपन्यास लेखन में हमें इब्ने सफी को पहले नम्बर पर ही रखना चाहिए, क्योंकि बाकी जितने भी हैं, सबने इब्ने सफी को पढ़ने के बाद ही कलम थामी है!
बाकी नम्बरों में हरएक की अलग सोच होगी!
पर मैं देवकीनंदन खत्री और दुर्गा प्रसाद खत्री और कुशवाहा कान्त के लाल रेखा और गोल निशान को वरीयता देना चाहूँगा, क्योंकि वे तब छपे और हिट हुए थे, जब अधिकांश जासूसी लेखकों का सफर आरम्भिक ही था!
उसके बाद सबसे आगे आने वालों में श्रद्धेय ओम प्रकाश शर्मा और वेद प्रकाश काम्बोज ही थे! वेद प्रकाश शर्मा ने कितना भी बेहतरीन लिखा हो, अगर उन्होंने वेद प्रकाश काम्बोज को नहीं पढ़ा होता तो शायद ऐसी कल्पना शक्ति के धनी नहीं बनते, जैसे थे!
वेद प्रकाश काम्बोज के बाद सबसे ज्यादा और भिन्नता लिए उपन्यास राज भारती के ही हैं!
उसके बाद वेद प्रकाश शर्मा को कुछ अलग हट के लिखने का श्रेय दिया जा सकता है!
कर्नल रंजीत के नाम से छपने वाले एक भी उपन्यास को मौलिक नहीं कहा जा सकता! सब पैरी मैसन तथा अन्य अंग्रेजी उपन्यासों के रूपांतर हैं!
हाँ, भाषा के दृष्टिकोण से मखमूर जालन्धरी साहब को नौवें - दसवें स्थान पर रखा जा सकता है!
सुरेन्द्र मोहन पाठक को चमत्कारी भाषा का लेखक कह सकते हैं! उनके सभी उपन्यास अच्छे हैं, पर कथानकों के लिये वह अंग्रेजी उपन्यासों से आइडिया लेते थे, उन्होंने स्वयं भी कई बार स्वीकार किया है!
कथा प्रवाह ने मामले में सुरेन्द्र मोहन पाठक बहुत लेखकों से आगे रखे जा सकता हैं, क्योंकि वह छोटे से प्लाट पर भी बड़ा उपन्यास खड़ा करने के माहिर रहे हैं! तो भी भाषा के चमत्कार में औम प्रकाश शर्मा और कृश्नचन्दर उनसे बहुत आगे रहे हैं!
जब मैंने सुरेन्द्र मोहन पाठक को पढ़ना आरम्भ किया! पूरा- पूरा मनोरंजन प्रदान करने वाले लेखक के रूप में वह मेरी पहली पसन्द थे, लेकिन एक लेखक के रूप में मुझे उनके उपन्यास पढ़कर लिखने के लिये कोई आइडिया, कोई प्लाट नहीं आया, जबकि ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश काम्बोज, राज भारती के उपन्यासों में से एक नये उपन्यास की थीम मिल जाना मामूली बात रही है!
चन्दर ने भी अंग्रेजी उपन्यासों के रूपांतर से जासूसी लेखन आरम्भ किया! लेकिन चन्दर नाम से लिखने वाले, तब की बाल पत्रिका "पराग" के सम्पादक आनन्द प्रकाश जैन थे, जो कि खुद को साहित्यकार मानते थे और आरम्भ में जासूसी उपन्यास लिखना एक घटिया काम या लेखन मानते थे! बाद में उनकी विचारधारा बदल गई तो उन्होंने स्वयं स्वीकार कर लिया कि चन्दर नाम से वह ही लिखते रहे हैं!
परशुराम शर्मा को भाषा और कथानकों के दृष्टिकोण से बेहद शक्तिशाली लेखक मानते हुए अपनी पसंद के हिसाब से आप पहले दूसरे पांचवे किसी भी स्थान पर रख सकते हैं!
बाकी सब को आप बाक्स आफिस फार्मूला लेखकों की गिनती में रख सकते हैं! कुमार कश्यप, एस. सी. बेदी प्रदीप कुमार शर्मा आदि ने बेहतरीन लिखा है, लेकिन आप उन्हें एक अलग वजूद नहीं दे सकते! सब लेखक हैं और सबने लोगों का दिल खुश किया है, किन्तु कुछ भी ऐसा नहीं है, जिससे उन्हें कहीं नम्बरों में स्थान दिया जाये!
लोकप्रियता में भी सर्वोच्च नम्बरों से बहुत पीछे ही रखा जायेगा!
नजमा सफी, एन सफी, एच इकबाल पाकिस्तान में रहे होंगे किसी नम्बर पर, यहाँ तो उनके ज्यादातर नकली उपन्यास ही छपे हैं! मैंने स्वयं इन तीनों नामों के लिए लिखा है!
बिमल चटर्जी ने तूफान तो बहुत मचाया था, किन्तु एक
" टैंजा " नाम के कैरेक्टर के कुछ यूनिक उपन्यासों के अलावा पाठकों को कुछ चमत्कारी या बहुत ज्यादा यादगार नहीं दिया!
कुल मिलाकर यह समझिये कि ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश काम्बोज, सुरेन्द्र मोहन पाठक, राज भारती, परशुराम शर्मा, वेद प्रकाश शर्मा आदि के उपन्यास अभी भी आपको भरपूर मनोरंजन तो दे रहे हैं, लेकिन अब जमाना नये लेखकों का है! आज के लेखकों का है! उन लेखकों का है, जो कुछ भी लिखें - यदि कल्पनाशक्ति और लेखन शैली में विशिष्टता रखेंगे तो सब बड़े नामों से आगे निकल सकते हैं!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें