बरसो बारिश, बरसो बारिश | हिंदी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

बुधवार, 21 जुलाई 2021

बरसो बारिश, बरसो बारिश | हिंदी कविता | योगेश मित्तल

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 बरसो बारिश, बरसो बारिश।


गरम गरम धरती की साँसें, बरस-बरस कर ठंडी कर दो।

सूखी धरती के सीने में, प्रेम-बूंदों से दरिया भर दो।

खूब नहाऊँ  मैं बारिश में, मिट जाए तन-मन की खारिश।


बरसो बारिश, बरसो बारिश।

लेकिन ऐसी अनहोनी क्यों, कहीं बाढ़-सैलाब आ रहा।

जिंदा लोगों के सपनों में, मरने का ही ख्वाब आ रहा।

दुखियों का दुःख दूर करो, करो खुशी की सब पर मालिश।


बरसो बारिश, बरसो बारिश


-योगेश मित्तल

4 टिप्‍पणियां:

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    छोटी लेकिन ऐसी कविता जो सुंदर भी है और सार्थक भी।

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  2. blogger_logo_round_35

    इस कविता में जहां एक ओर बारिश को प्रेम का प्रतीक माना गया है वहीं दूसरी ओर इसे विनाश का भी। इसलिए कहा गया है कि हर चीज़ की अपनी मर्यादा होती।.....अति उत्तम

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