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स्रोत: पिकसाबे |
वो ही थी मेरी एक कविता,
मैं था - उसकी एक कहानी।
दर्द - दर्द था मेरा किस्सा,
वो खुश्बू की रात सुहानी।
उसकी आँखें जब खुलती थीं,
सूरज सिर पर आ जाता था।
पलकें जब मुंद जाती उसकी,
चांद छिपा भी, मुस्काता था।
फूल हमेशा खिल जाते थे,
जब बगिया में, वो आती थी।
भंवरे गुन - गुन - गुन गाते थे,
जब वो खुलकर मुस्काती थी।
मोती चमक-दमक जाते थे,
जब वो हँसकर- बातें करती।
कदम जहाँ पर पड़ते उसके,
हरी - भरी हो जाती धरती।
मेरे मन की वीणा थी वो,
सात सुरों की थी वो सरगम।
उसके बिना अधूरा हूँ मैं,
किसे सुनाऊँ अपना यह गम।
ज्यों चन्दा की ज्योति खो गई,
ज्यों सूरज भी अस्त हो गया।
वैसे ही टूटा मेरा सपना,
मनमोहक वो अक्स खो गया।
योगेश मित्तल
मन को कहीं गहरे तक स्पर्श कर जाने वाली कविता रची है योगेश जी आपने।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...! दरअसल मेरी कविता में अक्सर मैं खुद नायक नहीं होता, मिलने जुलने वालों की किसी बात से ही कुछ बात सूझ जाती है! ज्यादातर ऐसा ही होता है, क्योंकि मैं बहुत मस्त और जिन्दादिल हूँ!
हटाएंऔर कभी कभी तो मित्रों के कमेन्ट या किसी पोस्ट से ही कोई आइडिया मिल जाता है!