हैं अगर अपने भी यदि नाराज़ तो,
और गुस्सा है जो दिल में आज तो।
किसलिये, क्यों कर रहूँ उदास मैं,
क्यों न रखूँ - नव खुशी की आस मैं।
वो गले मिलते किसी भी मीत को,
मुझको न चाहें - न मेरे गीत को।
मैं भला शिकवा किसी से क्यों करूँ,
उनसे ही कहते, भला मैं क्यों डरूँ?
वो अगर नाराज़ हैं, रह लें अभी,
हम भी मुन्तज़िर हैं, वो मानेंगे कभी।
योगेश मित्तल
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