कचरे के डिब्बे में डालो | हिंदी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

सोमवार, 27 सितंबर 2021

कचरे के डिब्बे में डालो | हिंदी कविता | योगेश मित्तल

Image by 👀 Mabel Amber, who will one day from Pixabay 


मुर्दों  का  जो  माँस नोचकर, 

हलवा     पूड़ी      खाते      हैं! 

खुद  को  धर्मात्मा  कहते  हैं, 

और     बाबा    कहलाते     हैं! 


गिरगिट   जैसे   रंग   बदलते, 

करते   रहते    जर्नी   -   यात्रा! 

दस प्रतिशत सच में जो मिलाते

नब्बे  प्रतिशत  झूठ  की  मात्रा! 


उन   मीठे  -  मीठे   लोगों   से 

शूगर   जैसा    रोग   न   पालो!

बीमारी   के    सभी   कीटाणु, 

कचरे   के    डिब्बे    में   डालो! 


योगेश मित्तल

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