टमाटर | हिंदी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

सोमवार, 29 नवंबर 2021

टमाटर | हिंदी कविता | योगेश मित्तल

Image by Ernesto Rodriguez from Pixabay

 तेरे घर टमाटर, 

मेरे घर टमाटर, 

पड़ोसी के घर पर 

टमाटर नहीं है। 


पुलिस सूंघती 

आ गई घर हमारे। 

बताओ कहाँ से

टमाटर हैं मारे? 

हुए मंहगे इतने

गरीब रो रहे हैं। 

मिडिल क्लास भी

अब हुए हैं बेचारे।  


नम्बर दो का पैसा

कहाँ है छुपाया? 

लगता है वो सब

यहाँ पर नहीं है।  

तेरे घर टमाटर, 

तेरे घर टमाटर। 

पड़ोसी के घर पर 

टमाटर नहीं है। 


पुलिस वाले ने

एक डण्डा घुमाया। 

बता दे टमाटर

कहाँ से है आया? 

मना मेरी बीवी ने

मुझसे किया तो

हफ्ते से घर पर

टमाटर न लाया।


मैं जिस घर गया

तो वहाँ ये ही देखा! 

टमाटर यहाँ या 

वहाँ पर नहीं है।  

तेरे घर टमाटर

तेरे घर टमाटर

पड़ोसी के घर पर

टमाटर नहीं है। 


योगेश मित्तल

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