संजय गुप्ता और मनोज नाम की सच्चाई - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शनिवार, 20 मार्च 2021

संजय गुप्ता और मनोज नाम की सच्चाई

संजय गुप्ता और मनोज गुप्ता नाम की सच्चाई

संजय गुप्ता, राज कुमार गुप्ता जी के सबसे बड़े सुपुत्र हैं और यह "घोस्ट नेम" उन्हीं के नाम पर रखा गया, ट्रेडमार्क है! 


मनोज भी राज कुमार गुप्ता जी के मंझले बेटे का नाम है और मनोज पाकेट बुक्स की नींव उसके जन्म के बाद ही रखी गई थी तथा मनोज नाम का सामाजिक उपन्यासकार ट्रेडमार्क नाम रखा गया था!


उसमें पहले दो उपन्यास आदरणीय अंजुम अर्शी साहब ने लिखे थे, जो कि तब उर्दू में ही लिखते थे और उनके उपन्यासों का अनुवाद आदरणीय देशराज जी ने किया था, तब अंजुम अर्शी साहब भारती पाकेट बुक्स में अपनी तस्वीर तथा सैमी के नाम से भी उपन्यास छपवाने के लिए प्रयत्नशील थे! 


अंजुम अर्शी क्रिश्चियन थे और उनका पूरा नाम सैमुअल अंजुम अर्शी था! सैमुअल को शार्ट में "सैमी" कहते हैं! 


भारती पाकेट बुक्स में "सैमी" नाम से छपने पर अंजुम अर्शी साहब ने मनोज में उपन्यास देना बन्द कर दिया! उनके मनोज में छपे - मनोज के पहले दो उपन्यास थे - "खामोशी""जलती चिता"


मनोज में तीसरा उपन्यास एक बिल्कुल नये लेखक दिनेश पाठक ने लिखा था, जो शायद उसका पहला और आखिरी उपन्यास ही था, जिसकी एडिटिंग मैंने कई  बार की थी! 


दिनेश का उपन्यास था
फूल और कांटे ! 


उसके बाद मनोज नाम से लिखने के लिए जमील अंजुम साहब का आगमन हुआ!


- योगेश मित्तल 

©योगेश मित्तल

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