उम्र से कोई बूढ़ा नहीं होता...! | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शनिवार, 20 मार्च 2021

उम्र से कोई बूढ़ा नहीं होता...! | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल


बालों की सफेदी से - कोई बूढ़ा नहीं होता, 
ये  उम्र  किसी  दौर  का  अन्दाज़  नहीं  है! 
दिल जिन्दादिल हो और मुहब्बत में रवाँ हो,
क्या फर्क, जो कल था, मगर आज नहीं है!

बढ़ने से सालों साल कोई बूढ़ा नहीं होता, 
जीना लगे मुश्किल तो ही आता है बुढ़ापा! 
वरना तो साठवें में, हो जाता है बच्चा-सा, 
गाता है - सा-सा रे-रे गा-गा मा-मा पा-पा!

साँसों  में  जिसकी,  सरगम  सी  खनक  हो, 
नजाकत भरे अन्दाज़ में फूलों की लचक हो! 
वो  शख्स  कभी  भी - बूढ़ा  नहीं  होता, 
जिस दिल में हो शोखी, आँखों में चमक हो!

योगेश मित्तल
©योगेश मित्तल

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