कोरोना की.... शरारत | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

रविवार, 25 अप्रैल 2021

कोरोना की.... शरारत | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल

कोरोना... की शरारत | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल
Image by Jeyaratnam Caniceus from Pixabay


जीवन की हरएक शाम, 
शतरंज  की  बाजी  थी। 
मैं  हार  के  खुश  होता, 
तुम  जीत  में  राजी थीं।

अक्सर  हम  लड़ते भी, 
फिर  मान  भी जाते  थे। 
मन   की   सभी   गाँठें, 
हम प्यार से सुलझाते थे। 

दिन  यूँ  ही  गुजरते  रहे, 
वक़्त बहता रहा पल-पल। 
रहते  थे  हम  दोनों  ही, 
एक-दूजे  के  लिए पागल। 

जब   से  कोरोना  आया, 
बिगड़ी  है  सबकी हालत।
कुदरत  का  यह  कहर है,
या ईश्वर की कोई शरारत। 

- योगेश मित्तल

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