मेरी जुबान का सच,
बहुत कड़वा है, यह माना।
मगर दिल चांदी जैसा है,
ये तुमने क्यों नहीं जाना।
तुम्हारे पास रहते हैं,
बहुत मीठी जुबां वाले।
नीयत में खोट रखते हैं,
दिलों में छुरियाँ और भाले।
मुहब्बत क्यों है साँपों से,
बताओ क्या है लाचारी।
समन्दर जैसी आँखों में,
बसे हैं क्यों दुराचारी?
योगेश मित्तल
बहुत अच्छी कविता है यह आपकी मित्तल जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, जितेन्द्र माथुर जी..
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