तुमसे है सवाल | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

रविवार, 4 जुलाई 2021

तुमसे है सवाल | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता

मेरी   जुबान   का    सच, 

बहुत कड़वा है, यह माना। 

मगर दिल चांदी जैसा है, 

ये तुमने  क्यों  नहीं जाना। 


तुम्हारे   पास   रहते   हैं, 

बहुत  मीठी   जुबां  वाले। 

नीयत में खोट रखते हैं, 

दिलों में छुरियाँ और भाले।


मुहब्बत क्यों है साँपों से, 

बताओ  क्या   है  लाचारी।

समन्दर जैसी आँखों  में, 

बसे    हैं   क्यों   दुराचारी? 


योगेश मित्तल

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