मुझे देखकर मुस्कराना तुम्हारा - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

मुझे देखकर मुस्कराना तुम्हारा

Image by Rahul Singh from Pixabay


मुझे देखकर मुस्कराना तुम्हारा, कसम से मेरी जान ले के रहेगा।
सपनों में हर रोज आना तुम्हारा, कसम से मेरी जान ले के रहेगा।

कभी पास आना, कभी रूठ जाना,
मनाऊँ अगर मैं तो नखरे दिखाना,
अगर गुदगुदी मैं कमर में करूँ तो,
तुम्हारा बड़े जोर से खिलखिलाना 

कभी पहलू में बैठ जाना तुम्हारा, कसम से मेरी जान लेकर रहेगा।
मुझे देखकर मुस्कराना तुम्हारा, कसम से मेरी जान ले के रहेगा।
सपनों में हर रोज आना तुम्हारा, कसम से मेरी जान ले के रहेगा।

याद आती हैं, मीठी-मीठी वो बातें,
कटती नहीं है ये नागिन सी रातें,
तुम्हारे बिना जिंदगी है अधूरी,
आ जाओ कब से तुम्हें हम बुलाते।

चिढाकर मुँह भाग जाना तुम्हारा, कसम से मेरी जान लेकर रहेगा
 मुझे देखकर मुस्कराना तुम्हारा, कसम से मेरी जान ले के रहेगा।
सपनों में हर रोज आना तुम्हारा, कसम से मेरी जान ले के रहेगा।

मेरे प्यार की इक कहानी तुम्हीं हो
मेरी रातों की राजरानी तुम्हीं हो 
आशिक कहो या पागल, हूँ तुम्हारा 
मेरी मौत और जिंदगानी तुम्हीं हो

अदा से यूँ नजरे घुमाना तुम्हारा, कसम से मेरी जान लेकर रहेगा
मुझे देखकर मुस्कराना तुम्हारा, कसम से मेरी जान ले के रहेगा।
सपनों में हर रोज आना तुम्हारा, कसम से मेरी जान ले के रहेगा।

- योगेश मित्तल

© विकास नैनवाल 'अंजान'

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