दिल्ली-देहरादून - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

दिल्ली-देहरादून

योगेश मित्तल हिन्दी कविता
दिल्ली-देहरादून


मुझे क्यों छोड़ कर दिल्ली, 
पहुँच  गई  है, तू  देहरादून! 
तेरे   होंठों   की   लाली  में, 
शामिल  अब है  मेरा  खून! 

जरा  तू    सोच   मेरी  जां, 
कैसे   रोटी   मैं   खाऊँगा! 
बनाने  बैठा  यदि  मैं  खुद, 
तो उंगली  भी  जलाऊँगा! 

जली रोटी तो  खा लूँगा, 
कहाँ    बरनोल    ढूँढूँगा! 
कहाँ   ढूँढूँगा   मैं   मोजे, 
कहाँ    रूमाल    ढूँढूँगा! 

तू जल्दी लौटकर आ जा, 
मेरी  फरियाद  तू ले सुन! 
आ  जा लौट कर  दिल्ली, 
न जाना फिर तू देहरादून! 
        
योगेश मित्तल

©योगेश मित्तल 

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