अमृत कलश - योगेश मित्तल | हिन्दी कविता - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

अमृत कलश - योगेश मित्तल | हिन्दी कविता

अमृत कलश | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता
Image by Jill Wellington from Pixabay 


वो जो ज़िन्दा हैं जमीं पर
तेरा   नाम    ले   रहे   हैं! 
ठंडी हवा का तुझसे ही
वो   काम   ले    रहे   हैं! 

हर  साँस  तुझसे  ही  है, 
धड़कन तुझ ही से  धड़के! 
होती  तेरी  ही  चिन्ता, 
जब  बायीं  आँख  फड़के!

मुहब्बत है तुझसे ज़िन्दा, 
हर    प्रेम    साँस     लेता! 
बच्चा  हो  या  हो बूढ़ा
तेरी    ही     आस    लेता! 

कभी माँ में तू है दिखती, 
कभी  बहन  में   थिरकती! 
कभी बनती जीवनसाथी, 
बेटी - सी   भी    फुदकती! 

बीमार  की  तू   सिस्टर, 
नवजात   की    तू   टीचर! 
तुझसे  ही  सृष्टि  चलती
मीडिया  के  चलते फीचर! 

वाणी  में  तेरी  अमृत, 
अमृत  का  तू  कलश  है! 
तुझसे ही इस जगत का
हर  पल  मधुर  सरस  है! 

नारी    महान   है    तू
हर  घर  की  जान  है  तू! 
संसार   की   खुशी   का
घर  का  अभिमान  है  तू! 

तुझको  नमन  करे  ना, 
वो   जीव    है    निकम्मा! 
चरणों   में   तेरे   मस्तक
रखूँ    मैं    दादी    अम्माँ! 
 
- योगेश मित्तल 

© योगेश मित्तल 

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