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चांद कुछ उदास है,
चांदनी भी रो रही!
शबनमी बरसात भी
जिस्म को भिगो रही!
तेरी याद आ रही,
और मुझे सता रही!
ऐसे में तन्हाई भी,
जिस्म जां को खा रही!
सारी दुनिया सो रही,
मेरी रात रो रही!
आ जा ख्वाब में सही,
अब तो देर हो रही!
- योगेश मित्तल
© योगेश मित्तल
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