रोती हुई रात | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

रोती हुई रात | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल

रोती हुई रात | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल
Image by DarkmoonArt_de from Pixabay 

चांद कुछ उदास है,
चांदनी  भी  रो  रही!
शबनमी बरसात भी
जिस्म को भिगो रही! 

तेरी  याद  आ  रही,
और  मुझे  सता  रही!
ऐसे  में  तन्हाई  भी,
जिस्म जां को खा रही! 

सारी दुनिया सो रही,
मेरी    रात   रो    रही!
आ जा ख्वाब में सही,
अब  तो  देर  हो  रही! 

- योगेश मित्तल

© योगेश मित्तल 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें