तड़प | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

तड़प | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल

तड़प | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल
स्रोत: पिक्साबे


इतना ज्यादा दुःखी हूँ मैं कि
खाना-पीना - भूल गया हूँ।
सच तो यह है - जाने कब से
खुश हो, जीना भूल गया हूँ। 

सिर्फ तुम्हारी वजह से मेरी,
हंसी - चेहरे से रूठ गई है।
दिल की सुन्दर आकृति भी
अब शीशे-सी टूट गई है। 

मगर तुम्हें एहसास नहीं है,
किंचित भी आभास नहीं है।
शायद मेरी तड़पन का भी,
तुम्हें ज़रा विश्वास नहीं है  !

मेरे मरने पर भी शायद,
तुम्हें कोई दुख-दर्द न होगा।
लेकिन तुम्हें चाहने वाला,
मुझ सा कोई मर्द न होगा।     

-योगेश मित्तल

© योगेश मित्तल

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