स्रोत: पिक्साबे |
इतना ज्यादा दुःखी हूँ मैं कि
खाना-पीना - भूल गया हूँ।
सच तो यह है - जाने कब से
खुश हो, जीना भूल गया हूँ।
सिर्फ तुम्हारी वजह से मेरी,
हंसी - चेहरे से रूठ गई है।
दिल की सुन्दर आकृति भी
अब शीशे-सी टूट गई है।
मगर तुम्हें एहसास नहीं है,
किंचित भी आभास नहीं है।
शायद मेरी तड़पन का भी,
तुम्हें ज़रा विश्वास नहीं है !
मेरे मरने पर भी शायद,
तुम्हें कोई दुख-दर्द न होगा।
लेकिन तुम्हें चाहने वाला,
मुझ सा कोई मर्द न होगा।
-योगेश मित्तल
© योगेश मित्तल
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