बहुत हैं | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

बहुत हैं | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल

बहुत हैं | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल
Image by JL G from Pixabay


मेरे   घर   बिना  बुलाये, 
मेहमान      बहुत     हैं! 
पर भीड़ में भी घर मेरा, 
वीरान      बहुत       है! 

जो  दोस्त  हैं,  वो  सारे, 
अनजान    बहुत      हैं! 
मुझ पर जो थोपे गये हैं, 
इल्ज़ाम     बहुत      हैं! 

तेरे    दिये    दागों    के 
निशान       बहुत      हैं! 
तुझे  प्यार  करने  वाले, 
नादान      बहुत       हैं! 

  योगेश मित्तल

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