Image by PublicDomainPictures</a> from Pixabay |
फिर दर्द उभर कर यूँ आया,
और बोला - तुझे ले जाऊँगा।
मैं भी कुछ ज्यादा जिद्दी हूँ,
बोला - मैं तो नहीं आऊँगा।
वो ढीठ घुस गया यूँ सिर में,
जैसे - तबला उसे बजाना है।
मै बोला - यहीं रह ले बेटे,
तुझे जब तक साथ निभाना है।
कुछ दिन मेरे सिर में जालिम,
बिस्तर ही लगाकर बैठ गया।
उस दर्द की इस कम्बख्ती पर,
मैं भी गुस्से से ऐंठ गया।
मै लगा टहलने घर में ही,
इस कोने से - उस कोने तक।
मेरे कान पे जब जूं ही न रेंगी,
वो 'दर्द' लगा रोने फक - फक।
आखिर उसने ही जोड़े हाथ,
बोला मुझसे - मैं जाता हूँ।
मेरा कोई भाई, न आये इधर,
सब भाइयों को समझाता हूँ।
-योगेश मित्तल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें