नारे ही नारे | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

बुधवार, 16 जून 2021

नारे ही नारे | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता

 नेहरू जी  का  एक  था  नारा, 

आराम          है            हराम! 

असल   में   वो  भी  करते  थे, 

चौबीस         घण्टों        काम! 


जय  जवान- जय  किसान  की, 

भरी    शास्त्री   जी   ने   हुंकार! 

असली   गाँधीवादी   वही   थे, 

सादा    जीवन  -  उच्च  विचार! 


इन्दिरा जी  कहती थीं  हमेशा, 

काम    ज्यादा   -   बातें   कम! 

अपने खून का  कतरा-कतरा, 

बहा  देश  के लिये,  तोड़ा  दम! 


और  योगेश मित्तल  का  नारा, 

बिना   बात    मुस्काना   सीखो! 

जीवन  के   तनावों  को  त्यागो, 

हरदम  हँसना  -  गाना  सीखो! 

योगेश मित्तल

1 टिप्पणी: