उलटी गिनती | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

बुधवार, 16 जून 2021

उलटी गिनती | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता

  जीवन तो है - उलटी गिनती, 

  शुरू - जन्मते  ही   होती  है।

  थाली की जो टनटन बजती, 

  अर्थी  पर  जाकर  सोती  है। 


हरेक जन्मदिन पर, जीवन की,

अनगिन  साँसे   कम  हो  जातीं।

लेकिन  दुनिया  जन्मदिन  पर, 

केक   काटती,   मौज़   मनाती।


पैदा    होते    ही    पैसा    भी, 

रोज़  नया  एक  खेल  दिखाता। 

कभी खाक को,  लाख बनाता, 

कभी  लाख  ज़ीरो  कर  जाता। 


जीवन का हर पल  नसीब की, 

इधर   उधर  -  चादर  फैलाता। 

उठते  को  यदि  चित्त  गिराता, 

गिरे   हुए  का   भाग्य   बनाता। 


रिश्तों का प्रेम और झगड़ा भी, 

कभी  रुलाता  -  कभी  हँसाता। 

सच,  ईमान,  वफा  वाला  भी, 

अपनों   से   है   ठोकर   खाता। 


यारों, ये  है - झूठ  की  दुनिया, 

यहाँ    बेइमानी     जिन्दा    है। 

सदा   भलाई   करने   वाला, 

बुरों  के  सम्मुख    शर्मिन्दा  है।


अच्छा सोचो - अच्छा कर लो, 

अच्छाई    से     नाता    जोड़ो। 

हर  बुराई   उलटी   गिनती  है, 

हर   बुराई  से  -  नाता   तोड़ो। 


पाप और जुर्म सदा विवेक के, 

होते    हरदम    दुश्मन   भारी। 

शुद्ध मन से लो साँस यदि तुम, 

डरा  न  पाये,  मृत्यु -  बीमारी। 


हर क्षण एक साँस कम होती, 

जीवन  कम   होता  जाता  है। 

सदुपयोग कर लो जीवन का, 

देखो,  शून्य  निकट आता  है। 

- योगेश मित्तल 

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