बीवी का नौकर | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

रविवार, 29 अगस्त 2021

बीवी का नौकर | हिन्दी कविता | योगेश मित्तल

Image by Thomas G. from Pixabay


आलू लाना, अदरक लाना, 

और ले आना प्याज़। 

बीवी ने समझाये हमको, 

घर-गृहस्थी के काज़। 


घर से सीधा बाज़ार जाना, 

बाज़ार से घर आना। 

बीच राह में मिले, जो कोई, 

हरगिज़ नहीं बतियाना। 


पैसे गिन कर देना-लेना, 

नहीं  छोड़ना  एक  भी  पैसा। 

धनिया-मिर्ची मुफ्त माँगना, 

चाहें  दुकानदार  हो  कैसा।


एक किलो ले लेना टमाटर, 

सख्त सख्त और लाल लाल हों। 

सब्जी सारी ताजी लाना, 

सड़ा या बासी नहीं माल हो। 


बैंगन  लेना  लम्बे  मोटे, 

नीबू  रस  से  भरे  और छोटे। 

पैसे जब वापस लो, देखना, 

पकड़ा न दे कोई सिक्के खोटे। 


आधा किलो भिन्डी ले आना, 

शलजम मूली भूल ना जाना। 

दो तीन सस्ते फल भी देखना, 

और ले आना, मकई का दाना। 


एक गड्डी पालक की लेना, 

मेथी  ले  लेना  -  दो  गड्डी। 

मोल भाव भी जमकर करना, 

कहीं न रहना, जरा फिसड्डी। 


रस्ते में दिखे कोई पड़ोसन, 

झट से आगे तुम बढ़ जाना। 

भूले से भी बात न करना, 

दोबारा   न  पड़े  समझाना। 


जाओ फटाफट, जल्दी आना, 

एक  मिनट  भी  नहीं  गँवाना। 

घर  के  बहुत  काम  बाकी है, 

रुककर  कहीं  नहीं  सुस्ताना। 


करता सभी काम बीवी के, 

चाहें  हँसकर, चाहें  रोकर। 

इकलौती  बीवी  है  मेरी, 

मैं उसका  इकलौता नौकर। 


योगेश मित्तल

2 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी अच्छी हास्य कविता रची है आपने योगेश जी। ऐसी कि पढ़ते ही होठों पर मुस्कान आ गई।

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    1. शुक्रिया भाई जी!
      आपके कमेन्ट्स सदैव प्रेरणादायी होते हैं!
      जय श्रीकृष्ण!

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