सच्चाई मेरा नाम है | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

सच्चाई मेरा नाम है | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता

Image by Arek Socha from Pixabay


जिस तरफ भी मैं चलूँगा, 

तुम   मेरे    पीछे    चलोगे। 

रुक गये तो सोच लो तुम

खुद को खुद से ही छलोगे।


रास्ते    हों    टेढ़े  -  मेढ़े, 

फिर भी चलता जाऊँगा मैं। 

ऊबड़ खाबड़ राह पर भी, 

हँस  - निकलता जाऊँगा मैं।


गाँधी   जैसे   पाँव   मेरे, 

नेहरू    जैसा    ओज    है। 

जिद्द है  -  बढ़ते रहने की

बाकी   सब   तो  मौज   है।


मैं पथिक हूँ, यायावर हूँ, 

मस्त      बंजारा     हूँ      मैं। 

फांकता      हूँ       धूल

गलियों-गलियों का मारा हूँ मैं।


मैं  मुसाफिर  हूँ  सदी  का, 

आगे    बढ़ता    जाऊँगा   मैं। 

आँख  के  अन्धों  को  भी, 

अब   राह   दिखलाऊँगा   मैं। 


मेरे   पीछे   जो   चलेगा, 

रास्ता       मिल       जायेगा। 

खुश रहेगा, वो सदा और

फूल - सा    खिल    जायेगा। 


लोग   सच   कहते   मुझे, 

सच्चाई    मेरा     नाम     है। 

पाँव    तोड़ूँ    झूठ    के, 

बस,  ये  ही   मेरा  काम  है। 


योगेश मित्तल

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