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आज हिन्दी रो रही है, अपने मान के लिए।
दोषी कवि लेखक हैं इस अपमान के लिए।
कवियों की मूर्खताओं से हिन्दी हुई बीमार।
लेखकों ने भी किया है - हिन्दी को शर्मसार।
मेरी को मिरी लिखते हिन्दी गजल में ये।
तेरी को तिरी लिखते हिन्दी गजल में ये।
मैं भी अक्सर लिखता - गंवार को जाहिल।
सुस्ती दिखाने वाले को लिखा मैंने काहिल।
मैं भी सभी सा दोषी हूँ - हिन्दी के लिए।
हिन्दी की हो रही चिन्दी-चिन्दी के लिए।
खुद को सभी बदल सकें तो धन्य होगी हिन्दी।
दुनिया की हरेक भाषा से अनन्य होगी हिन्दी।
योगेश मित्तल
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