हिन्दी के दोषी | योगेश मित्तल | हिंदी कविता - प्रतिध्वनि

कविता, कहानी, संस्मरण अक्सर लेखक के मन की आवाज की प्रतिध्वनि ही होती है जो उसके समाज रुपी दीवार से टकराकर कागज पर उकेरी जाती है। यह कोना उन्हीं प्रतिध्वनियों को दर्ज करने की जगह है।

मंगलवार, 14 सितंबर 2021

हिन्दी के दोषी | योगेश मित्तल | हिंदी कविता

हिन्दी के दोषी | योगेश मित्तल | हिन्दी कविता
Image by Harish Sharma from Pixabay


आज हिन्दी रो रही है, अपने मान के लिए।

दोषी कवि लेखक हैं इस अपमान के लिए। 


कवियों की मूर्खताओं से हिन्दी हुई बीमार। 

लेखकों ने भी किया है - हिन्दी को शर्मसार। 


मेरी को मिरी लिखते हिन्दी गजल में ये। 

तेरी को तिरी लिखते हिन्दी गजल में ये।


मैं भी अक्सर लिखता - गंवार को जाहिल। 

सुस्ती दिखाने वाले को लिखा मैंने काहिल।


मैं भी सभी सा दोषी हूँ - हिन्दी के लिए। 

हिन्दी की हो रही चिन्दी-चिन्दी के लिए। 


खुद को सभी बदल सकें तो धन्य होगी हिन्दी। 

दुनिया की हरेक भाषा से अनन्य होगी हिन्दी। 


योगेश मित्तल

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