स्रोत: पिक्साबे |
फटा पजामा देखके, मैडम गईं घबराय।
बोलीं, कम्बख्तों के पिता, कहाँ फाड़ के लाय?
कहाँ फाड़ के लाय, दूसरा नहीं पजामा।
अब क्या चड्ढी में घूमोगे, बन के गामा?
कह योगेश कविराय, हो गई मुश्किल भारी।
पजामा क्या फटा, लग गई क्लास हमारी।
कैसे फटा, कहाँ पर फाड़ा, किसने फाड़ा?
बजा कानों में, प्रश्नों का, पुरजोर नगाड़ा।
क्या बतलायें फटने की दुख भरी कहानी।
पतले से मोटे होने की है, ये कारस्तानी।
पहले पजामे में अक्सर दौड़ लगाते।
अब मुश्किल है, जरा भी ढंग से, बैठ न पाते।
एक एक करके, बदल गये हैं सारे कपड़े।
मगर पजामा सालों से, हम एक ही पकड़े।
आखिर कब तक - साथ निभाता एक पजामा।
अब क्या पहनूँ - तुम्हीं बता दो मेरे रामा?
- योगेश मित्तल
बहुत ही अच्छी हास्य कविता रची है यह योगेश जी आपने। निस्संदेह आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं।
जवाब देंहटाएंकुछ तो माँ शारदे और कुछ मित्रों व शुभचिन्तकों की शुभकामनाओं और प्यार तथा उत्साहवर्धन का असर है, वरना नाचीज़ तो कोई चीज़ ही नहीं है! सबसे बड़ा उदाहरण है कि मैंने जीवन में कभी कोई भजन या सांग नहीं लिखा था, लेकिन विकास नैनवाल और सुजाता देवराड़ी जी ने जिक्र किया, लिखवाया और मोहित बैंजवाल जी के स्वर में विजयपाल जी के संगीत में एक बहुत मधुर भजन तैयार करवा कर, प्रस्तुत कर दिया! राम पुजारी जी और सुबोध भारतीय जी ने प्रेत लेखन पर विस्तृत सामग्री पुस्तकाकार में प्रस्तुत करने का संयोग उत्पन्न कर दिया!
हटाएंकिंडल पर भी कुछ लोग मेरे लेखन कार्य को सहेज़ रहे हैं!
सबको धन्यवाद करूँ तो शायद बहुत सारी पंक्तियाँ तैयार हो जायेंगी!
जय श्रीकृष्ण!